सालों बाद मुलाक़ात का दिन एक खड़ा था,
वो थे तो किसी और के पर ये दिल ज़िद पे अडा था।
मुस्कुराहट देख उनकी ये मन तो काफी हल्का था,
पर सच कहुं तो दिल मेरा ज़ोरो से भी धड़ाका था।
हाल चाल के बाद हमारी बात मानो थमी नहीं,
वो मुस्कुराके कह रहे पर लब्ज़ में उनके नमी नहीं।
वो ज़लील करते थके नहीं हम लब्ज़ तक ना बोल पाए,
सालों का वो रिश्ता शायद शब्दों में ना तोल पाए।
उस रिश्ते के खातिर उनकी आंखो में कोई ग़म नहीं,
हम आज भी उनके आशिक़ थे पर उनकी आशिकी हम नहीं।
घड़ी भी वक्त की उस पल दो पल के लिए थम गई,
जब उनके लिए वो बेवफ़ाई समजदारी बन गई।
बात करते करते फिर ये लब्ज़ भी मेरे थम गए,
जब मान लिए इस दिल ने की वो अपने पराये बन गए।
और जुदाई के वक्त वो हमसे कुछ ऐसी बात कह गए,
हम होठों से मुस्का दिया पर अश्क बेवफ़ा बन गए।
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