अमावस की रात में पि को मालूम है रास्ता,
अपने घर का
पूर्णिमा की चांदनी में मैंने भूला दिया,
शहर अपने बाबुल का-
मैं-कृष्ण की रूकमणी❤
दिन के हलचल से जब
थक कर शाम को घर देखती हूँ
सूकुन के पल में तुम्हारा साथ देखती हूँ।-
हाँ
सच हैं मैं रिश्तों से दूर रहती हूं
इसलिए नहीं क्योंकि मैं अकेले रहना
पसंद करती हूं
इसलिए क्योंकि लोगों की उम्मीदें
आपसे दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगतीं हैं
और जब स्वयं भगवान लोगों के उम्मीदों पर
खरे नहीं उतर पाते तो
मैं तो महज एक इंसान हूं
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प्रकृति की हरियाली के साथ ये बारिश ,
बारिश के साथ ये चाय और
इन सब के बीच "हम"
सिर्फ हमारे लिए-
चलो मानती हूँ
मुझमें हजारों ख़ामियां हैं
तो तुम ही बताओ
तुम कौन से परिपूर्ण हुए
जो मुझमें ख़ामियां ढूंढ गए
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बेपरवाह बेधड़क
रहने वाली
आज परवाह करना
सीख गई
रिश्तों की बेफिक्री से
आज रिश्तों की फिक्र
सीख गई
फिर भी..
लगता है कहीं तो वो चुक गई-
कल वो किस किस का था क्या फर्क पड़ता है
आज वो मेरा है बस इसी पल में पूरी उम्र गुजार दूं-
पौधों को बढ़ने के लिए खाद-पानी तो डालते
पर रिश्तों को क्यूँ यूं ही बढ़ाना चाहते हो-