Saumya Kumari   (Saumyayitri)
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Saumyakumari17092003@gmail.com
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Joined 25 February 2021


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8 MAR 2023 AT 8:05

मुबारक हो आपको होली का त्यौहार
हो ईर्ष्या का प्रेम पर हार
खेले सभी जैसे जीना हो एक बार
खुशियों से रंग जाए पूरा परिवार
मुबारक हो आपको होली का त्यौहार

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25 JAN 2023 AT 19:22

मैं भी इन पत्तों सा धूल जाता तू एक दफा बारिश तो बन के देखती

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25 JAN 2023 AT 18:56

सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
छुपाने को इसके सारे राज हजारों झूठ इसके संग देखा है
पहली दफा जब सामना हुआ हृदय में अपने डर देखा है
पौधों से दूरी , मंदिर जाने में भी पाप का अंश देखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
न हो इसका आगमन तो सुना वंश देखा है
मां सुनने के स्वप्न का अंत देखा है
टूटते कमर लड़खड़ाते पैरों के साथ वो चार दिन देखा है
चेहरे के पीलापन में भी मुस्कान की रेखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
इस साधारण से बात में भी लाज पाया
जब चलते चलते कपड़ों पर दाग आया
गुजरते लोगों के चेहरे पर देख कर मुस्कान आया
प्रकृति ने भी इस रूप में बेरंग साहस में रंग भेजा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
कागज़ के छाया में काली थैली इसका लिबास ठहरा
पिता बंधु न देखें उसके लिए न जाने कितना पहरा
निकली ज़ुबान से जब इसकी बात सुनने वाला पाया बेहरा
नई पीढ़ी हूं खयाल वक्त के साथ बदलना सीखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है



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6 JAN 2023 AT 22:53

आंखे उम्मीद में हैं
दर्द ने कहा मैं भी हूं।
होंठ लम्बाई भूल गए हैं
मुस्कान ने कहा मैं भी हूं।
खुशी अपनी नीलामी में है
कीमत ने कहा मै भी हूं।
मन पर्दा खींच रहा है
इच्छा ने कहा मै भी हूं।
मोह रौंद रहा है
सुन्यता ने कहा मैं भी हूं।
बोल उफान पर है
अलगाव ने कहा मै भी हूं।
असमंजस चेहरा छुपाए है
ज़िन्दगी कह रही मैं भी हूं।
आवाज़ अपनी मिठास भूल गए
निगाहों में लज्या ने कहा मैं भी हूं।

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27 SEP 2022 AT 17:49

दूर जाने की ज़िद न करो
दिल अभी भरा नहीं
बस निगाहें मिला के चुरा लेना
आँखो में देखने की अब वज़ह नहीं

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25 SEP 2022 AT 17:34

चल साथ इस बारिश में कुछ चुनने से ऊपर उठते हैं
छोड़ कर भींगी जमीनें बूंदों के कतारों में बहते हैं
खुल के बोल दिल में सिर्फ मुस्कान रख के न ज्यादा सोंच के
जो रहा है उसे भगवान पे छोड़ के होने देते हैं

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23 SEP 2022 AT 1:07

पेड़ पत्तो से दोस्ती कर रोशनी को हमें छुप के देखते देखा है
मैंने तुझे समझने में भी खुद को उलझते देखा है

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22 SEP 2022 AT 11:41

पन्नो को इतनी जोर से कसने की सोंच रही हूँ
लिखावटों का फ़लसफ़ा न हो तेज़ हवाओं से भी
जो बदलने की सोचूं तो अफ़सोस का सजदा न हो
मिले वो रास्ता तो चल दूँ जहाँ आज भी कुछ बदला न हो

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20 SEP 2022 AT 20:18

लड़खड़ाते मेरे कदमों में फिसलन बहुत थी मगर गौर तब कर पाई जब हाथ भी तेरा दिखा और ज़मीन भी तेरी निकली

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20 SEP 2022 AT 1:22

तय कर ले वो सख्स भी जो एक सा सबके साथ रहना हो
गुफ़्तगू निभा के सबसे ही आराम के वक्त बस हमें यादों में लाना हो

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