सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
छुपाने को इसके सारे राज हजारों झूठ इसके संग देखा है
पहली दफा जब सामना हुआ हृदय में अपने डर देखा है
पौधों से दूरी , मंदिर जाने में भी पाप का अंश देखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
न हो इसका आगमन तो सुना वंश देखा है
मां सुनने के स्वप्न का अंत देखा है
टूटते कमर लड़खड़ाते पैरों के साथ वो चार दिन देखा है
चेहरे के पीलापन में भी मुस्कान की रेखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
इस साधारण से बात में भी लाज पाया
जब चलते चलते कपड़ों पर दाग आया
गुजरते लोगों के चेहरे पर देख कर मुस्कान आया
प्रकृति ने भी इस रूप में बेरंग साहस में रंग भेजा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
कागज़ के छाया में काली थैली इसका लिबास ठहरा
पिता बंधु न देखें उसके लिए न जाने कितना पहरा
निकली ज़ुबान से जब इसकी बात सुनने वाला पाया बेहरा
नई पीढ़ी हूं खयाल वक्त के साथ बदलना सीखा है
सिर्फ लाल रंग नहीं मैंने कष्ट में हर अंग देखा है
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