कोई तो तरीक़ा होगा ग़मों को भुलाने का
कभी मौक़ा मिलेगा, क्या हमें भी मुस्कुराने का
हैं विराँ दिल,कोई दस्तक नहीं देता हैं इस घर में
खर्च होता हैं क्या पैसा, यहां पर आने जाने का।
ज़मानें में ज़मानें से, कभी न करना उम्मीदें
देख लोगे तुम भी चेहरा,एक दिन इस ज़मानें का।
बन के साया साथ रहते थें वो, हमसें जुदा अब हैं
मिला था वक़्त मुश्किल से, उसके पास आने का।-
कभी अगर मैं रूठ जाऊं तो मूझे मना लेना
मैं लौट आऊंगी,मुझे बोला लेना ।
सारे शिक़वे शिकायत रंजिशे,मिट जाएगी तुमसे
गले ऐ जान ए जां,ऐसे मुझे लगा लेना
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उम्मीदों की खिड़की बन्द कभी मत किजे
क़दम चुमेंगी ये दुनियां,आप मेहनत तो किजे।
हैं मुमकिन क्या नहीं, मुश्किल ऐ लोगो सबको आती हैं
सिने में जुनू के शो़लों,बरपा किजे।
न हो उम्मीदे जिसमें,ख़्वाब चाहत और तमन्नाए़़
वो मर चुके हैं आप ख़ुद को न मुर्दा किजे।-
होंठों पे कुछ दिल में हैं कुछ,दर्मियां ये नहीं अच्छा
बाद में हो,इस पहले, अब बिछड़ जाना ही अच्छा हैं
मुझको तलकी़न करते हैं जो, ख़बर उनको नहीं मेरी
ग़म में अक्सर मैक़दे का,दर ठीकाना ही अच्छा हैं
सुना हैं रुत बदलती हैं, बदलते तुमको देखा हैं
मेरी हर बात पे सिक़वे, ये बहाना ही अच्छा हैं
श़हर छोड़ा वतन छोड़ा,तेरा कुछ हैं पास मेरे
तेरी तस्वीर को जाना,अब जलाना ही अच्छा हैं-
जुदाई ने सिखाया तन्हां राहों में चलना
भरोसे जिसके हम थे, साथ उसने ही छोड़ा।
संवरते रोज़ जिसमें,देखा करते थे तुझको
वो शीशा ख़ुद ही मैंने,अपने हाथों से तोड़ा।
इतना आंसा नहीं है, ख़त्म होना यों सब कुछ
बाद मुद्दत के योरों, हैं अब भी दर्द थोड़ा।
ज़िंदगी भर ना भूलें,कोई पहली मुहोब्बत
बड़ी मुश्किल से टुटे, दिल के टुकड़ों को जोड़ा।
जुदाई ने सिखाया तन्हां राहों में चलना
भरोसे जिसके हम थे,साथ उसने ही छोड़ा-
फैसला आसान ना था मगर गुज़ार दिया
मिटा कर ख़ुद को, तुझे संवार दिया-
अगर सब लिखें बातें दिल की, तो इक़ ज़माना लगेगा
सुन के बातें मेरी भूल जाओगे तुम दुनिया,अंदाज मेरा
लगेगा।
ना कोई आरज़ू बाक़ी, ना कैसी तमन्ना रहेगी
तुम्हें दुनिया से बेहतर, दिल का ठीकाना लगेगा।
जिनसे मिलते हैं जिस्म, उनसे अक्सर दिल नहीं मिलते
जिस्म से रूह के सफ़र में, ज़माना लगेगा।
मिज़ाज ऐसा हो ,जिसमें ना रहे उम्र की बंदिश
नहीं लोगों को कभी इश्क़, फिर पुराना लगेगा।-
तुम्हारा दर्द हम किस को बांटते
दिल के कोने में मैंने, इसको छिपाए रख़्खा।
सवाल पुछूंगा दुनियां से यारों मैं एक रोज़ं
इश्क़ वालों को,क्यों मुजरिम बनाए रख़्खा।
जिसके नज़दीक मुहोब्बत भी एक देवता थीं
उसे दुनियां ने सुली पर, चढ़ाए रख़्खा।
कैसे मिट जाएगी मेरी, उल्फ़त की दांस्तां
ज़हेन लोगों ने,अब तक मुझे बसाए रख़्खा।
हवाएं ज़ोर में अपने,मिटना चाहें मुहोब्बत
चराग़ ए इश्क़ आज भी लोगों ने जलाए रख़्खा।
(Saud) तुझको भी कभी आशिकी़,रास न आई
मगर पैग़ाम ए मुहोब्बत सदा, फैलाए रख़्खा।-
किसी की यादों का इसमें,बसेरा भी नहीं।
वैहश़त ख़मुशी़ तन्हाई,ये सब हैं दोस्त मेरे
मिलें खुशियां ऐसा कोई,सवेरा भी नहीं-