EGO
Even the Creator of cosmos—
the One who holds galaxies in His palm—
smiles in defeat
when His beloved Lakshmi wins a playful game.
But man?
He trembles at a woman’s victory,
calls it male-ego,
as if love must always bow before pride.
She—wife, mother, sister, daughter—
is not the queen of luxuries,
but the traveler of thorn-filled paths.
Her smile is stitched
with countless sacrifices,
her silence is a scripture
unread by this world.
If God can bend to love,
why can’t man soften his chest of stone?
Why not sprinkle petals on her weary way,
why not let your hands be
the gentle touch of tenderness?
For every smile you gift her
becomes a hymn,
and every ego you drop
becomes a prayer.
-
Lecturer,Performer,Arti... read more
जो तुम्हारे कष्ट में तुम्हें दस रुपए देता है, ईश्वर उसे हज़ार लौटाएगा।
और जो तुम्हारे संकट में तुमसे पाँच पैसे भी छीन लेता है,
प्रभु उससे पाँच हज़ार वसूल करेगा।
इसलिए तुम बस निश्चिंत रहो, श्रद्धा रखो और अपना कर्म करते रहो।-
---अन्याय की विरासत---
जब दो प्रेमी प्यार में बँधते हैं,
तब समाज लड़की के ही चरित्र पर सवाल क्यों उठाता है?
क्या पुरुष चरित्रहीन नहीं हो सकता?
जब दोनों माँ-बाप मिलकर संस्कार देते हैं,
तो बच्चों के बिगड़ने पर
सिर्फ़ माँ की परवरिश ही दोषी क्यों ठहराई जाती है?
क्या पिता संस्कार देने में अक्षम है?
जब अपत्य-सृजन दोनों का मिलन है,
तो संतान न होने पर
औरत को ही बाँझ क्यों कहा जाता है?
क्या पुरुष केवल बीजदाता है,
उसकी असमर्थता का कोई नाम नहीं?
जब दो जीवनों का भाग्य जुड़ता है,
तो विधवा का कलंक सिर्फ़ नारी पर क्यों?
क्या पुरुष अमर है?
क्या वही “चिरसाधवा” है?
जब पिशाच पुरुष अपनी कामनाएँ थोपते हैं,
तो इज्जत सिर्फ स्त्री का ही क्यों जाता है?
फिर पुरुष क्या इज्जत रहित है ?
जब मर्द खुलेआम अपनी वासनाएँ तृप्त करने
वेश्यालयों में जाते हैं,
तो औरत घर के भीतर कैद क्यों?
क्या उनकी इच्छाओं पर पहरा नहीं?
औरत को वेश्या कहने में देर नहीं लगती,-
कल तक मैं थी तेरी पसन्दीदा,
तेरी प्रियतमा, तेरी गहरी दोस्त,
हर दुख-सुख की इकलौती साथी।
आज मेरी आपत्ति पर
सहयोग माँगते ही,
तू लाखों बहाने बनाने लगा…
दुनिया के अंधेरों में मैंने सबका साथ दिया,
उनके दर्द भी माफी लायक,
पर जब तू रौनक बनते-बनते
मेरी हँसी ही छीन ले गया—
यही सबसे गहरा घाव है।
अब गम इस बात का नहीं
कि तू साथ नहीं,खुशी इस बात की है
कि तेरा असली चेहरा सामने आ गया।
तू बस मेरी जिन्दगी के
“बेवफाई के पन्नों ” की एक यादगार हिस्सेदार रह जायेगा,
क्योंकि बुरे दिन ही सिखाते हैं
कौन अपना है और कौन गिरगिट-सा बदल जाने वाला।
तुम वेफिक्र रहो में तुम्हे भूलूंगा नहीं
क्यूँ की तुम एक यादगार किस्से ही बना दिये ये बेवफाई पन्नों पर!-
माँ–बाप की अनुभवभरी सीख
कभी–कभी आज कठोर या कष्टदायक लगे,
पर यदि उसे धैर्य से सुन लिया जाए,
तो वही सीख भविष्य के
अनेक कष्टों को दूर कर देती है।-
●●●●पाठशाला का परिवार●●●●
जब मैं छोटी थी,
व्याकरण माँ बनकर आई —
शब्दों की लोरी सुनाई,
वाक्यों का अनुशासन दिया,
और सही उच्चारण की थाली में पहचान सजाई।
फिर आई साहित्य —
मासी-सी ममता लेकर,
व्याकरण की रेखाओं में रस भर दिया,
हर शब्द को जीवन, हर वाक्य को धड़कन बना दिया।
ज्यामिति और गणित पिता बनकर आए —
कठोर भी, दयालु भी।
अंकों की डाँट में छिपी मिठास,
सूत्रों और परिशंख्या से सजता मेरा संसार।
नीम की कड़वाहट जैसे,
पर बाद में वही औषधि बनकर जीवन सँवारते रहे।
(संपूर्ण्ण कविता अनुशीर्षक पर)-
विचार-विमर्श तो लोग पिछे करते रहेंगे, पर उनके चर्चा को अपने
कानों और हृदय से दूर रखो। क्योंकि दर्शक नहीं
सिर्फ कलाकार ही रंगमंच पर जीता है l-
Once I asked the Almighty:
“Lord, how will I know my own?
Those who truly love, care, and stand by me?
All are Your lovable creations…
but how can I tell who is truly mine?”
The Lord smiled.
“Do not worry,” He said,
“I will give you the test —
but you must remember the answers.”
Puzzled, I asked, “And how will that be?”
He replied,
“When the storms come,
and your skies turn dark,
watch who stays.
Bad times will strip away the masks,
and only the true will remain.”
That day I understood —
loyalty is not proved in the comfort of sunshine,
but in the shadows of your hardest nights.
And that words may soothe the ears,
but actions… they tell the soul’s truth.-
प्रिय चाय !!!
तुम इंसान नहीं, फिर भी हर दिल की ज़रूरत हो।
एक प्याली में छुपा है सुकून, अपनापन और ज़िन्दगी का स्वाद।
तुम्हारे बिना सुबह अधूरी, और शामें बेरंग लगती हैं।
तुम हो, तभी रिश्ते गुनगुने और लम्हे मीठे बन पाते हैं।
तुम सिर्फ़ एक पेय नहीं… तुम हर दिन की सबसे प्यारी शुरुआत हो।
(CAPTION CONTAINS FULL CONTEXT)-
जिसे पाने को इंसान त्याग देता है —
माँ का आँचल,दोस्तों की हँसी,
नींदों की चादर,और सपनों का खिलौना।
पर जब वो मिल ही जाता है...तो लगता है —
इन्हीं त्यागों के कारण,सब कुछ पीछे छूट गया।
ना बची अपनी पहचान,,ना बचा वो गाँव का मोड़,
ना बचे रिश्ते जो,सच्चे थे, बेसाख्ता थे।
अब बस,खोई हुई यादें
हर रोज़ पूछती हैं —
क्या हासिल किया,
जिसके लिए..खुद को ही खो बैठे तुम?-