Saubhagyalaxmi JULIET   (Saubhagyalaxmi_Juliet❤️)
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Joined 1 February 2019


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Joined 1 February 2019

विचार-विमर्श तो लोग पिछे करते रहेंगे, पर उनके चर्चा को अपने
कानों और हृदय से दूर रखो। क्योंकि दर्शक नहीं
सिर्फ कलाकार ही रंगमंच पर जीता है l

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11 AUG AT 13:17

Once I asked the Almighty:
“Lord, how will I know my own?
Those who truly love, care, and stand by me?
All are Your lovable creations…
but how can I tell who is truly mine?”

The Lord smiled.
“Do not worry,” He said,
“I will give you the test —
but you must remember the answers.”

Puzzled, I asked, “And how will that be?”

He replied,
“When the storms come,
and your skies turn dark,
watch who stays.
Bad times will strip away the masks,
and only the true will remain.”

That day I understood —
loyalty is not proved in the comfort of sunshine,
but in the shadows of your hardest nights.
And that words may soothe the ears,
but actions… they tell the soul’s truth.

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26 JUL AT 19:08

प्रिय चाय !!!

तुम इंसान नहीं, फिर भी हर दिल की ज़रूरत हो।
एक प्याली में छुपा है सुकून, अपनापन और ज़िन्दगी का स्वाद।
तुम्हारे बिना सुबह अधूरी, और शामें बेरंग लगती हैं।
तुम हो, तभी रिश्ते गुनगुने और लम्हे मीठे बन पाते हैं।
तुम सिर्फ़ एक पेय नहीं… तुम हर दिन की सबसे प्यारी शुरुआत हो।

(CAPTION CONTAINS FULL CONTEXT)

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24 JUL AT 17:16

जिसे पाने को इंसान त्याग देता है —
माँ का आँचल,दोस्तों की हँसी,
नींदों की चादर,और सपनों का खिलौना।

पर जब वो मिल ही जाता है...तो लगता है —
इन्हीं त्यागों के कारण,सब कुछ पीछे छूट गया।
ना बची अपनी पहचान,,ना बचा वो गाँव का मोड़,
ना बचे रिश्ते जो,सच्चे थे, बेसाख्ता थे।

अब बस,खोई हुई यादें
हर रोज़ पूछती हैं —
क्या हासिल किया,
जिसके लिए..खुद को ही खो बैठे तुम?

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24 JUL AT 17:05

उन बारिश की बूँदों में
मरे हुए बचपन की यादें
आज भी मैं अपनी कागज़ की नाव ढूँढती हूँ —
जो हँसी की गलियों में बह जाया करती थी।

गर्मियों की छुट्टियों में
मुझे अपना गाँव याद आता है —
कीचड़ भरी गलियाँ, आम के पेड़,
और दोपहर की मीठी नींदें।

दशहरे की रौनक में
दादी-नानी का गाँव याद आता है —
नई कपड़ों की ख़ुशबू, प्रसाद की मिठास,
और चाँदनी रातों में सुनाई जाने वाली कहानियाँ।

समय ने उम्र दी,
दर्द ने सहनशक्ति दी,
पर कुछ भी रोक न सका —
उस मासूम सवेरा को याद करने से —
जिसे दुनिया बचपन कहती है।

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19 JUL AT 5:32

If someone tries to copy you, don’t worry…
The most "buyable" and glittering things
can never compete with real GEMS.
They might shine like pearls on the surface,
but they can never match the depth of a real soul.

✨ Be the original. The world notices the divine, not the duplicate.

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18 JUL AT 12:33

“Dear Society, You’re Really Strange…”
(A Tribute to Soumyashree & Amisha)

Dear society,
You light candles for a girl you buried in silence.
Soumyashree screamed, filed complaints, begged for breath —
But you measured her pain in formalities,
Till she made her death a statement,
Right in front of those who were deaf to her cries.

And then there’s Amisha —
Trapped miles away in a foreign cage,
A noose waits for her neck,
For the sin of being strong, of defending herself,
Of not being a silent victim.

You call her a criminal now?
Where were you when she was being broken?
When her dignity bled in silence,
You wrote comments, not petitions.
You scrolled. You sighed. Then moved on.

Oh society,
Why do you whisper only when it’s too late?
Why do you wait for tombstones to speak truth?
You broke Soumyashree with neglect,
And you’re killing Amisha with cowardice.
You worship goddesses,
But crucify real women with your judgment.

You say “Nari Shakti”,

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13 JUL AT 22:02

"घर की सबसे छोटी बेटी"


घर की सबसे छोटी बेटी,
नाजुकसी, मुस्कान में लिपटी एक कहानी।
सबके लिए हँसी, सबके लिए जान,
पिता की आँखों की चमक, माँ की ढलती थकान।

कल तक तितली थी जो आँगन में उड़ती,
आज बन गई है वो एक शेरनी—चुपचाप लड़ती।
बड़े बेटे की संघर्षगाथा सबको याद रहती है,
पर छोटी की चुप्पियाँ अक्सर नजर से छूट जाती हैं।


(CAPTION Contains Full CONTEXT)

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12 JUL AT 1:03

मेरा बस चले तो,
तेरे चेहरे की थकान ले लूँ,
अपने हिस्से की हँसी से
तेरे दिन को सुकून दे दूँ।
तेरी साँसों में जो उलझनें हैं,
उन्हें अपनी धड़कनों से सुलझा लूँ।
तेरे दुःख का भार मैं ओढ़ लूँ,
तेरे हिस्से की हर तकलीफ़ को चुरा लूँ।

तेरी बातों की खुशबू
अपनी रूह में बसा लूँ,
हर लम्हे को तेरे नाम का
इत्र बना कर जी लूँ।
अगर कोई दर्द आए तेरे हिस्से,
तो खुदा से कहूँ —
"उसे मेरे हिस्से कर दो,
मुझे वो सब मंज़ूर है जो उसे राहत दे।"

मुझे कुछ और नहीं चाहिए,
सिवाय इसके —
कि तेरा चेहरा मुस्कुराता रहे,
भले मेरी आँखों में नमी क्यों न हो।
क्योंकि मैं तुमसे सिर्फ़ प्यार नहीं करती,
मैं तुम्हारे दुःख को भी
अपना सौभाग्य समझती हूँ।
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9 JUL AT 23:59

○○○○ डर से डर तक○○○○

जब मैं नन्ही थी, धरती से गिर जाना भी डराता था,किसी ने मारा तो मुंह नहीं खोल पाती थी —
क्योंकि डर था… डर सिखाया गया था। तभी तो सोचा — जल्दी बड़ी हो जाऊं,शायद तब डर कम होगा।

स्कूल पहुँची, तो डर बदला रूप —होमवर्क, टीचर्स की डाँट,फिर मन किया — कॉलेज की उड़ान भरूं।
कॉलेज में पहुँची —फिर डर था असफलता का, भीड़ का, पहचान खोने का…
मन हुआ — यूनिवर्सिटी चलें,जहाँ सोच को पंख मिले।

पर जब वाकई यूनिवर्सिटी पहुँची —दिल कहने लगा — स्कूल की खिड़कियों से आती हवा ही सच्ची थी।
अब तो उस बचपन की शरारतें भी याद आती हैं,जहाँ पेंसिल गिराना भी साहस था।

आज जब समाज की सच्चाई सामने है —बचपन का सपना भी डराता है,
क्योंकि नन्ही सी जानें भी,राक्षसी नजरों की शिकार हो जाती हैं।

आज की बच्चियां —या तो दुपट्टे में बंधीं हैं, या पर्दों में कैद,या फिर कपड़ों से परे भी
दुर्व्यवहार की आग में झुलसती हैं।ना साड़ी रक्षा कर पाई,ना सलवार, ना बुरका —
यहाँ रक्षक भी कब राक्षस बन जाएं, कोई नहीं जानता।

इसलिए आज मन ने खुद से कहा -- वो बचपन,वो उम्र किसी के हिस्से नहीं आती।
तो जहां हूँ, जैसे हूँ —वहीं जी लूं पूरी तरह....
पता नंहि कौन सा मोड़ था जहाँ औरत बेखौफ थी!

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