।। राजस्थानी चहे मान ।।
।। कवित्त ।।
राजस्थानी चहे मांण, एक सदी हुई हांण,
जांण बूझ नेता मरूभाषा नें लजावणां ।
दस बैठा राज्यसभा, दोयसौ विधानसभा,
पूरा ऐ पच्चीस नित लोक सभा जावणां ।
जोधपुरी पे'र कोट मायड़ में मांगे वोट,
चोट करे जीततां ही, गीत हिंदी गावणां ।
राजस्थानी युवा रुजगार नें तरस रिया,
नौकरियां पावत है परदेशी पांवणां ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण झोरड़ा-
।। जीतिये रा सोरठा ।।
भायां साम्हीं भौंक, बैर्यां सुं बाथां मिले ।
ऐ मिनखां में जोंक, जरब जिमाणां जीतिया ।।
भावार्थ ~ हे ! जीतिया, जका मिंनख आपरे भायां, परिवारजनां अर हितैषियां सुं दुरी बणांवे अर अहितकारी और फुट घालर लाभ उठावंण आळा मिनखां री बातां में आवे अर परिवार रो बुरो चाह्वे, बे मिंनख परपोषी जीव जोंक रे समान हैं, एड़ा लोगां रो तो जुतां उं स्वागत करणों चाहिजै ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)-
।। जीतिये रा सोरठा ।।
हुई रवानां हज्ज, अणगिण खाकर उंदरा ।
कहती कुत्तां कज्ज, जीवन हत्या जीतिया ।।
भावार्थ - हे ! जीतिया ; अणगिण उंदरा रो भक्षण करर मिंनकी स्याणीं बणती कैवे के, ऐ कुत्ता जको काम करे नीं हिरण मारणों र मिनक्यां लारे दौड़नो ओ जीव हत्या है, पाप है, आं कुत्तां नें एड़ो कांम नीं करणों चाहिजे ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)-
थमने नहीं दिया हिंद को युग-ओ-युग से,
ये चर्ख़-ए-तिरंगा इतना अज़ब क्यूं है ।
हम सभी की वालिद है जो मां भारती,
सहोदरों का न्यारा न्यारा मज़हब क्यूं है ।
मां कहूं तो हिन्दू हूं अम्मी से मुसलमां,
केवल इसी सबब से तय ये नस़ब क्यूं है ।
सुकूं भरा है हुकुमत-ए-हिंदुस्तान में,
फिर भी हमें विलायत की तल़ब क्यूं है ।
साहस शांति संपन्नता के हैं तीनों रंग,
सत्येन्द्र ये तिरंगा इतना गज़ब क्यूं है ।
© सत्येन्द्र सिंह चारण
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।। कळायंण ।।
।। दुहा ।।
नाद हुवै घण नभ्भ में, गजब होत अति गाज ।
उमटी है उतराद में, अजब कळायण आज ।।
घूमर बादळ घालर्या, चपल बजावत चंग ।
पून थाळ री ताळ पर, अवनी थिरकत अंग ।।
अवनी थिरकत अंग पर, नभ मन उपजे नेह ।
प्रेम जतावंण ओ करे, घोळांह रुपी मेह ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)-
वचनां वाळो वायरो, अर सैणां रो सीर ।
ऐ दो बातां बह गई, ज्यूं नदियां रो नीर ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)-
।। छप्पय ।।
बरस मेघ अति गज्ज, तुं करण कज्ज किरसान।
बरस मेघ अति गज्ज, इण रज्ज उगावण धान ।
बरस मेघ अति गज्ज, इब लज्ज रखावण लोक ।
बरस मेघ अति गज्ज, कर सज्ज वसुंधर चौक ।
सज्ज धज्ज कळायण उमटी, रज्ज रज्ज उडिके रेत ।
अज मझ्झ अषाढे माह में, गज्ज गज्ज बरसो खेत ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)
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जो चले सदैव सध्य, करे ना किसी को बध्य,
रहे ना प्रपंच मध्य, सभ्य नर जानिए ।
पशु पंछी रंक राव, स्त्रियंन से सदभाव,
पाहुन की आव भाव, निज धर्म मानिए ।
हिये ना कपट क्लेश, ना हीं कछू राग द्वेष,
मिठी वाणीं सादा वेश, सादगी बखानिए ।
घर में विश्वास घात, रचे कूट दिन रात,
ऐसन भुजंग भ्रात, लात दे उठानिए ।।
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।। दोहा ।।
कर बंशी सिर मयुरपंख,
शंख सखा सुर साज ।
श्याम चहे सुनाभ सहित,
गौ ग्वालिन गिरिराज ।।
मखन चोर मुळकावतो,
सखन लेय कर साथ ।
ग्वालिन पट गुड़कावतो,
नटखट ब्रज रो नाथ ।।
© सत्येंद्र सिंह चारण (झोरड़ा)
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गळे भुजंग कुंडळी रुद्राक्ष माळ धारिया ।
सजाय मुंड माळिका असंख मेख मारिया।
भभूत सुं नहाय तूं मशांण घाट रम्मिये ।
नमो शिवाय शंकराय आदिनाथ उम्मिये ।।
नशे मलंग तांडवं छमा छमंक नच्चिये ।
धुजे धरा धड़ंग धड़ंग घड़ंग नभ्भ गज्जिये ।
विराज तूं हिमालिये जहां जहांन जम्मिये ।
नमो शिवाय शंकराय आदिनाथ उम्मिये ।।
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