शब्द क्या थे उनके.. उन पर किसका फितूर था,
दो लफ्ज़ों की कहानी थी 'सत्या'
बाक़ी सब कुछ गुरुर था।
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परिवार को तोड़ने वाले एक हजार लोग भी कम पड़ जाते हैं, सिर्फ एक जोड़ने वाला काफी होता है। आप कौन हो?
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एक शून्य एक धन्य,पीर है बड़ी जघन्य
जीवन जैसे अभ्यारण्य,खो रहा कहीं चैतन्य
परमशून्य मूर्धन्य,सर्वमान्य पाञ्चजन्य
मूर्ख हैं स्वभावजन्य,समस्या है परिस्थितिजन्य
सर्वथा नहीं सामान्य,शत्रु है अनन्य अन्य
पापजन्य कहाँ पुण्य,किसका है ये सौजन्य
सत्या है स्वनामधन्य,समाज है चेतनाशून्य
एक शून्य एक धन्य, पीर है बड़ी जघन्य
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इल्म न हो जब आबोहवा का सत्या,
क्या आज़ाद करूँ तूफ़ान-ए-जहाँ में।-
ये अफवाहों का ज़माना, ये बातों का बतंगड़
न कोई नज़्म है, न गीत न संगीत ही है,
न नेहरू है, न गांधी है, न अम्बेडकर है, न सावरकर है,
छात्र तो अब रहा ही नहीं, छात्रावास में मचा शोर है।
विश्वविद्यालय अड्डा-ए-विश्वयुद्ध है, समस्या ये बड़ी घनघोर है।
साजिश-ए-सियासत की ये इन्तेहाँ देखिये साहब
चोरों का राजा, हुकूमत के लिए मचाये शोर जोर-जोर है।-
इश्क़ वो ख़ुशबू है जिसे हुश्न के पनाह की जरूरत नहीं,
नज़र चाहिए जौहरी जैसी, तराश के पत्थर बना दे जो हीरा,
शिद्दत हो, जुनून हो, आशिक़ी हो तो फिर हुश्न निखर आएगा,
प्यार, इश्क़, मोहब्बत और हुश्न तब मिलेगा हर कहीं- हर कहीं।
#सत्या-
हर वक़्त बदल रहा आसमाँ जन्नत-ए-जमीं से,
न जाने फिर ये आवो हवा एक सी क्यों है?
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कलम कह रही है यूँ चुप न बैठ..
और अगर चुप ही बैठना है
तो फिर उठा मुझे..
और लिख तब तक के तेरे
लब इन बोलों से आज़ाद हो जाएं।-
कुछ लफ़्ज़ों को सुकूँ दे दे,
कुछ हरकतों को जुनूँ दे दे।
ये न शिद्दत-ए-जंग है, न ही मुसलसल
इस उन्स में बस इतना गवारा कर
कि तू कहे तो कुछ मैं दे दूँ और
फिर मैं कहूँ तो कुछ तू दे दे।।-
मृत्यु तो है अटल
उसके पहले है जीवन
जो है सरल, सबल
चंचल, अविरल
आज, कल और कल
हर बीते हुए पल
हर आने वाले पल
न रुकेगा ये अविचल
न ही रुकनी है ये हलचल
मृत्यु तो फिर भी है अटल-