आसमान अपनी बुलंदीयों पे बहुत इतराता है!
ये भूल जाता है की वो जमीन से ही नजर आता है!-
मुझे प्रेम है अपने शरीर से_
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{मुझे खत्म होना है ऐसे,
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मुझे चाहत नहीं है किसी कारवां की "ज़ानिब",
मंजिल-ए-इश्क में एक शख्स ही काफी है_-
मेरी तरह कोई टूट कर चाहे,तो कहना,
तेरी तन्हाई में कोई ठहर जाए,तो कहना,
मिलेंगे बहुत तुम्हें,तुम्हारे कपड़े उतारने वाले,
जो कोई दुपट्टा तोहफे में दे जाए,तो कहना_-
बीत गया ये साल भी,कुछ हासिल नहीं हुआ,
फिर एक दफा हाथ अपना मलते ही रह गए_-
बहुत बचाया था रिश्ते को,आग की लपटों से_
इक रोज़ तंग आकर हमने,माचिस लगा दिया_-
गूंजती है तुम्हारी बातें,आज भी मेरे कानों में_
वो तुम्हारा कहना की तुम सिर्फ मेरे हो_-
अगर चुनना पड़ा "तुममें" और "विरह" में,
तो मैं "विरह" का चयन करूंगा,
क्यूंकि,
"मिलन" में समय के साथ "प्रेम",
सीथिल होता दिखाई पड़ता है,
परंतु,
"प्रेम" की प्रमुखता तो केवल विरह में ही संभव है_-
जनवरी की तरह ख़्वाब दिखाने वाले बहुत मिलेंगे,
मगर,
जो दिसंबर की तरह हकीकत से रूबरू कराए,
वो सच्चा होता है,
इसलिए मुझे दिसंबर ज्यादा प्यारा है,जनवरी से_-
मुझे दुनिया भूल जाए, इसका कोई ग़म नहीं_
तुम भी मुझे भूल गए, इसका मलाल बहोत है_-