Satyam Srivastava   (सत्यम बनारसी)
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अहम बनारसी
Joined 25 June 2020


अहम बनारसी
Joined 25 June 2020
15 JUL 2022 AT 0:22

वक्त में विरक्त हूं
मौन हूं सशक्त हूं
एक अमिट आरेख हूं
मृत्यु का उत्साह हूं

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7 JUL 2022 AT 17:57

तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह घाटों पर
डूब कर भी तेरे गंगा से मैं प्यासा निकला

कोई मिलता है तो खुद अपना पता पूछता हूं
मैं खुद की खोज में खोया तो "बनारस" निकला

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14 APR 2022 AT 10:49

हल्के हल्के बढ़ रही हैं....

चेहरे की लकीरें....

नादानी और तजुर्बे का...

बँटवारा हो रहा है...

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3 JAN 2022 AT 10:38

आग का बुझना महज संयोग है पानी के लिए
आग पानी से लग जाए तो कुछ बात बने

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3 JAN 2022 AT 10:27

अगर "शाम" लिखूं ... तो तू "सोच" मुझे
फिर "रात" लिखूं . ... तो तेरी "नींद" उड़े
जब "ख़्वाब" लिखूं ... तो तुझे कुछ कुछ हो
जो मैं "इश्क़" लिखूं .... तो तुझे हो जाए
और जब लिखूं "बनारस" ... तो तू लौट आए

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3 JAN 2022 AT 10:19

मुझे मालूम है तुम उतरोगी मोहब्बत के किस स्टेशन पर

पहले मैं भी उसी रास्ते से आया जाया करता था

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31 JUL 2021 AT 11:51

तुम्हारी एक दृष्टि अनेक आकांक्षाओं को समेटे जब पलकों से निकलती है

सूरज से होती हुई जब चांद तक पहुंचती है
आशा में डूबा मेरा मन छूने को दौड़ता है

वो दृष्टि जो तिनका बन मुझे डूबने से बचाती हुई
मेरी हृदय के प्रत्येक उत्तकों को भेदती चली जाती है

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31 JUL 2021 AT 11:49

शाश्वत प्रेम में डूबा हुआ मन
रात में चांद की तरफ भागता है

चांद का गुरुर सूरज निखारता है
सितारे गर्दिश में शामिल हो गए

रात की करवटों पे नदियां मुड़ गई
जुगनूओं ने बताया स्याह काली फैल गई

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31 JUL 2021 AT 11:48

हम अदीब से ये तवक़्क़ोअ रखते हैं कि वो अपनी बेदारमग़्ज़ी, अपनी वुसअत-ए-ख़्याल से हमें बेदार करे। उस की निगाह इतनी बारीक और इतनी गहरी हो कि हमें उस के कलाम से रुहानी सरवर और तक़वियत हासिल हो।

-प्रेमचंद

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9 MAY 2021 AT 11:36

लगाया था जो मां ने टीका आंखों के काजल से चुरा कर के
आज भी बचपन की उस तस्वीर में वो टीका मुस्कुराता है
किया था नाराज अपनी शरारतों से कभी बचपन में मां को
मां की उस तस्वीर में उसका गुस्सा मुस्कुराता है

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