जो गिरते थे हमारे आंगन, वो पत्ते आज कही और गिर रहे है..
लगता है , अब हवाओं के रुख कही और बदल रहे है..-
सुलगते अल्फ़ाज़, शायराना मिज़ाज़ और बेफ़िकरा अंदाज़..।। 😎�... read more
लोगों में जन्नत पाने की चाह सदा देखी है..
जन्नत का तो पता नहीं, मैंने "माँ" देखी है।।
अपनी आँखों से दुआ कुबूल होते देखी है..
मैंने दुनिया तो नही देखी, "माँ" देखी है..।।-
पिता की डांट से वो हमेशा मुझे बचाती है..
गलती होने पर भी मुझे "माँ" प्यार से समझाती है..।।
जो मंज़िल से मेरी 'नज़र' भटकती 'नज़र' आती है..
इशारों में ही मुझे "माँ" नयी सीख दे जाती है..।।-
मेरे चेहरे को देख वो मेरे हालात जान लेती है..
मेरे अंदर क्या है ये सिर्फ मेरी "माँ"पहचान लेती हैं..।।
मेरा झूठ तो वो चंद अल्फाज़ो में समझ लेती है..
मैं उसे क्या समझाऊँ; वो मुझसे बेहतर मुझे समझ लेती है..।।-
उसकी हर इक दुआ में मेरा जिक्र ज़रूर होता है..
"माँ" के लिये 'अपने' सिवा हर 'अपना' ज़रूरी होता है।।
कहते हैं लोग अपने सपनों का मान सबसे ऊपर होता है..
औरों के लिये जो अपने सपने भुला दे उसका नाम "माँ" होता है।।-
खुशामदी और मिन्नतों का दौर है साहब,
यहाँ बिना मतलब कोई किसी को पूछता तक नहीं..
ये भंवरे ही हैं जो रस के लालची हैं,
बाग़ उजड़ने के बाद ये मंडराते तक नहीं..।।-
'बंदिशे' हैं बेमतलब ग़र रोकना हो परिंदों को,
जो सहारे के ही मोहताज़ नहीं,
वो अपनी राह खुद बना ही लेंगे..!
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उनकी बढ़ती दूरी मानो चिंगारी सी दिल में सुलगती हैं..
'लहरें' हो चाहे कितनी ही ख़फ़ा,
'किनारे' पर आकर ही थमती हैं..।।-