मैं बच्चा सा हो जाता हूँ,
उनके सामने अपनी सारी परेशानियां भूल जाता हूँ|
मैं आज भी अपने माँ-बाप की गोद में बच्चा सा हो जाता हूँ|
दुःखों का बोझ उठाए, समाज में मुस्करा जाता हूँ|
मग़र अपने माँ-बाप की गोद में सच्चा सा हो जाता हूँ ||
अपनी भावनाएं छिपाये, समाज में कठोर हो जाता हूँ|
मग़र अपने माँ बाप की गोद में कच्चा सा हो जाता हूँ ||
ग़म इतने, मगर किसी को बतला नहीं पाता हूँ|
भूल सारे ग़म, माँ-बाप की गोद में मैं अच्छा सा हो जाता हूँ||
मैं आज भी अपने माँ बाप की गोद में बच्चा सा हो जाता हूँ ||-
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क्या आज भी ठहरा हुआ है वो वक़्त,
जिस वक़्त की तलाश में मैं आज हूँ |-
अंदाज़-ए-तकल्लुम कुछ यूं है हमारा,
सवाल भी खुद करते हैं और ज़वाब भी खुद |-
कभी फ़ुरसत से एक शाम गुजारना हमारे साथ,
वो दास्ताँ सुनाएंगे, जो जेहन में तो है मग़र जुबां पर कभी नहीं |-
ऐ खुदा! किसी का इतना भी इम्तेहान ना ले,
कि उसकी कोशिशे खत्म हो जाए |-
मेरी हर कोशिश में काबिलियत शामील थी |
कुछ कोशिशों के काबील मैं ना था, और कुछ कोशिशे ना ही मेरे काबील थी ||-
सूफियाना कलम में इश्क़ की स्याही से मोहब्बत को पैग़ाम लिखा हैं|
उस पैग़ाम में सरेआम, फ़लक पर तेरा नाम लिखा हैं ||-
देश की भूख मिटाने वाले, आज सड़कों पर भूखे हैं |
पानी की चोट उनपर, उनके खेत कब से सूखे है ||
आंसू नहीं अब आँखों मे, क्या असर आंसू गैस का |
कड़ी धूप में मेहनत करने वाले, उनके हाथ-पैर भी रूखे है ||-
बेशक मुस्कुराये हम कईयों को देखकर,
मग़र दिल की धड़कन तेरे लिए है |
यूं तो ख्वाहिशें बहुत सी है मेरी,
बस एक आख़री तड़पन तेरे लिए है ||-
सबसे आगे रहा, ज़माने की दौड़ मे इतना तेज़ दौड़ा हूँ |
खुद को इतना पीछे छोड़ा, अब खुद की तलाश मे खोया हूँ ||-