Satyam Mishra  
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निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
Joined 15 October 2019


निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
Joined 15 October 2019
9 APR 2021 AT 11:18

यूँ उठकर नजरें न फेरो तुम हमसे
कि अभी पूरी तन्हा रात बाकी है
जरा इत्मीनान से बाहों में बाहें डालकर बैठो
हमसे मुलाकात की मुस्सलसल बात बाकी है

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4 APR 2021 AT 1:37

सोम, मंगल, बुध या कोई हफ्ते का वार हो तुम
स्कूलों वाली पढ़ाई में सपनों का इतवार हो तुम
होली, दीवाली, वैलेंटाइन डे जैसे तुम
मेरे दिल मे धड़कते खुशियों का त्योहार हो तुम

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21 APR 2020 AT 14:18

ये दारू, ये सिगरेट, ये नुसख़े उसको भुलाने को
अजी छोड़ो, "गंज की चाय" है उसको भुलाने को

तुम जो कहते हो चला जाऊं ये शहर छोड़ के, क्यों
"लखनऊ" की हसीनाएं बहुत हैं उसको भुलाने को

वो कोई जन्नत की हूर नही ,मातम करूँ बिछड़ने का
जाना था जाने दो ,पूरी जवानी है उसको भुलाने को

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18 APR 2020 AT 21:23

उसके जिस्म से मेरा प्यार मिटाया जा रहा होगा
किसी और के नाम का महावर लगाया जा रहा होगा

ये उदासी,तड़पन,ये तीरगी क्यों है हर सम्स शायद
उसकी रूह को हिज्र का जहर पिलाया जा रहा होगा

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15 APR 2020 AT 9:19

"ख्वाहिश-ए-इश्क़"
को
मुकम्मल "अल्फ़ाज़"

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13 APR 2020 AT 12:10

जहन से आती प्यारी एक आवाज़ से मिला मैं
दिल में बजती सुनहरी एक साज से मिला मैं

क्यूं कहते हैं मेरे यार की शराबी हो गया जाना तब
जब महबूब की मख़मूर आंखों के राज से मिला मैं

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7 APR 2020 AT 12:24

शर्म, झिझक दूर करनी थी मुझे मेरे हमसफर की
उठा कर चेहरा गुस्ताख़ होंठों से गालों को चूम लिया

क्या खूब इश्क़ जताया कातिलाना अदा से उन्होंने भी
मारकर आंख मुझे फिर हाथों से आंखों को मूंद लिया

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30 MAR 2020 AT 10:09

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30 MAR 2020 AT 10:04

दर्द दूरियों का खुद से तुम कह लेती हो क्या
दूर हमसे होकर तुम रह लेती हो क्या
सहेलियां तुम्हारी जिक्र कर दें जब भी मेरा
मुस्कुरा कर आंख नम तुम कर लेती हो क्या???

वो सारी बातें, वादे और सारी मुलाकातें
सुबह की चाय और साथ बितायी चांदनी रातें
वो हसीं ठिठोली प्यार झगड़े गुस्सा सब तो हैं
मगर एक दूजे के गर्दन पर नही उलझती हमारी बाहें
वो स्कूल में बिताए लम्हों की यादें
वो घर जाते वक्त भिगोने वाली बरसातें
गले लग के वापस अपने घर जाते वक्त
पीछे से आने वाली "सुनो" की आवाज़ें
इतनी प्यारी कमियों को तुम सह लेती हो क्या
दूर हमसे होकर तुम रह लेती हो क्या
अपने जज्बातों को अपने अंदर ही रखती हो
अपनी सारी शिकायतें अब किससे कहती हो
वो "गुलाब" का फूल सूख गया है मेरे यार बताते है
दूर रहने के गम में क्या तुम घर के अंदर ही रहती हो
अब भी तुम मेरी लिए सजती-संवरती हो क्या
अकेले बैठ के पहले जैसे बेवजह मुस्कुराती हो क्या
जरा सी नादानी पर दांतों तले उंगली दबाती हो क्या
मेरे कमरे की खिड़की को खुला देख,
अब भी किसी को चुपके से बुलाती हो क्या
अब भी लखनऊ ही तुम रहती हो क्या
तस्वीर से अब भी बात तुम करती हो क्या
तुम्हे "चाय" पसंद नही फिर मेरे लिए
"हजरतगंज" की चाय अब भी तुम पीती हो क्या
दर्द दूरियों का खुद से तुम कह लेती हो क्या

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27 MAR 2020 AT 23:02

दर्द दूरियों को खुद से कह लेती हो क्या
दूर हमसे होकर तुम रह लेती हो क्या

सहेलियां तुम्हारी जिक्र कर दें जब भी मेरा
मुस्कुरा कर आंख तुम नम कर लेती हो क्या

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