ग़ज़ल
(1222 1222 1222)
इबादत में तिरा जब नाम लेता हूँ
अकल से मैं ज़रा कम काम लेता हूँ
मिरे उस यार को तू बेवफ़ा ना कह
मैं अपने सर ये भी इल्ज़ाम लेता हूँ
सुकूँ है दर्द है थोड़ा मुहब्बत में
मज़ा ये हर सुबह हर शाम लेता हूँ
हज़ारों हैं सितम बक्शे खुदा तूने
मगर तेरा दिया ये ईनाम लेता हूँ
निशानी बुज़दिलों की पीठ पे कहना
मैं हर इल्ज़ाम सर-ए-आम लेता हूँ- Satluj
8 JAN 2019 AT 20:53