क्यों बंद दरवांजों में भी,उनकी आहट सुनाई देती है
चलते हुऐ रास्तों पर भी चुपके से वो दिखाई देती है
नजाने कहाँ इस दिल को खबर हो जाती है,की वो
ही है फिर क्यों बार बार नजरें धोखा खा जाती है
ज़माने को मंजिल,सोहरत,कामयाबी नजर आती है कभी
गौर से सुनना दिल की आवाज़ को शायद ये कुछ और बयां
करना चाहती है क्यों वक़्त,एहसास और जज़्बात
में लिपटी ज़िंदगी,भीड़ में भी खुद को अकेला पाती है
क्योंकि शायद मोहब्बत,इश्क और तन्हाई में गहरा रिश्ता है
लिखने से ज्यादा महसूस की जाती है
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पतंग और डोरी भी थे,
हवा भी मस्त चल रही थी
मगर मन बेजैन था,
बस तुम्हारी कमी खल रही थी...-
इन सर्द रातों में
तेरी यादों की शॉल ओढ़कर
हम तन्हा ही घूमते रहते हैं
तुमसे मुलाकात तो खैर अब नहीं होती
पर तेरी तस्वीर से करते है बातें देर रात तक
और तेरे माथे को चूमते रहते हैं-
तुम आरजू मत पूछो
उसके साथ जीने की थी
तुम मेरा हाल पूछो
उसे देखने को तरस रहा हूँ-
गम तकदीर में नहीं लिखी होती हमारे,
बस हम ज़िद उन खुशियों की करते हैं,
जो हमारे लकीरों में नहीं-
“मेरा पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना
मैं समंदर हूँ लौटकर जरूर आऊंगा।”-
दूर कहीं उन सितारों में,एक दिन,
खो जाऊंगा मैं,
एक गहरी नींद में,न जाने कब,
सो जाऊंगा मैं,
एक बहता हुआ हवा हूं,बहकर फिर,
लौट आऊंगा मैं ।
इन मुस्काती हुई हवाओ में,एक मुस्कान,
मेरी भी होगी,
दूर चमकती हुई सितारों में,एक पहचान,
मेरी भी होगी ।
उन गरजती हुई बादलों में,एक गरज,
मेरी भी होगी,
इन बरसती हुई बारिशों में,एक बूंद,
मेरी भी होगी।
शायद दुनिया मुझसे खफा हैं,पर एक वफा,
बन जाऊंगा मैं,
एक और चेहरे की मुस्कान बनके, फिर से,
लौट आऊंगा मैं।-
अजीब तरह से गुजर रही मेरी जिंदगी,
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ, मिला कुछ-
सतरंगी अरमानों वाले,
सपने दिल में पलते हैं,
आशा और निराशा की,
धुन में रोज मचलते हैं,
बरस-बरस के सावन सोंचे,
प्यास मिटाई दुनिया की,
वो क्या जाने दीवाने तो
सावन में ही जलते है।-