Satyajit Swain   (Satyajit)
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Joined 19 October 2018


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14 SEP 2022 AT 13:15

दूसरे की भाषा बोलके के ख़ुश है
अपनी आँखें ख़ोल
अपना हिन्दी है, सबसे मिठा,
हिन्दी भाषा बोल ||

बिस्व हिन्दी दिवस की बधाई

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31 AUG 2022 AT 14:19

*ଜୟ ପ୍ରଭୁ ଗଜାନନ*
ଜୟ ପ୍ରଭୁ ଗଜାନନ ପ୍ରଭୁ ବିଘ୍ନରାଜ,
ତୁମ୍ଭ ପାଦେ ଭକ୍ତି ମନେ ପ୍ରଣମୁଛି ଆଜ ||

ମନୁ ହର ପାପ ଚିନ୍ତା ଦୋଷ କର କ୍ଷମା,
ତୁମ୍ଭ ବିନା ଅନ୍ୟ ଗତି ନାହିଁ ମୋର ଜମା ||

ବିନାୟକ ଦୂର କର ଯେତେ ବା ବିପତ୍ତି,
ମନେ ମୋର ଭରିଦିଅ ତୁମ ପାଇଁ ଭକ୍ତି ||

ଆଜିର ଦିନରେ ପ୍ରଭୁ ଏତିକି କାମନା,
ସଂସାରରେ ସୁଖ ଭରୁ, ନଥାଉ ଯାତନା ||

*ସତ୍ୟଜିତ ସ୍ୱାଇଁ*
*ଅଡ଼ଶପୁର, କଟକ*

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14 AUG 2022 AT 22:19

दिल की बातें कहने का
हर वक्त,
कलम साथ नहीं देती ||

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13 AUG 2022 AT 17:02

नजाने कहाँ खो गया
आसमान के चादर तान,
परबत के गोद में शो गया
जकड़ गया जो जानबुझ कर
मेरी आवाज़ सुनकर भी हिला नहीं,
अब ना कोई मलाल ना कोई ग़म है
फरेब मोहब्बत खोने का,
इस दिल को कोई गिला नहीं
खोने का ग़म क्यों करे उसका,
वो जो कभी मिला नहीं
वो जो कभी मिला नहीं ||

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11 AUG 2022 AT 16:52

कब कहाँ मुलाक़ात हो जाए
कुछ हसीन,
अपनी और उनकी बात हो जाए ||

दिन के उजाले में अब,
वो ताक़त ना रहा
कौन जाने कब,
चांदिनी रात हो जाए ||

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11 AUG 2022 AT 16:49

कब कहाँ मुलाक़ात हो जाए
कुछ हसीन,
अपनी और उनकी बात हो जाए ||

दिन के उजाले में अब,
वो ताक़त ना रहा
कौन जाने कब,
चांदिनी रात हो जाए ||

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23 JUN 2022 AT 21:30

*बावरा मन*

बावरा मन है यारों,नजाने कहाँ भागे,
कभी भीड़ के संग, कभी उससे आगे ||

कभी बादलों में घर बनाए
कभी सागर में खो जाए
कभी नाचता, कभी नचाता,
बड़ा निराला लागे ||

कभी अंधेरों में खो जाता
कभी उजाले में सो जाता
कभी उजड़े सपनों को,
जोड़ने के लिए जागे ||

ना कोई हद है उसका
ना कोई पराया है
जिसको देखा, प्यार किया,
उसे सब अपना लागे
बावरा मन है यारों,नजाने कहाँ भागे
बावरा मन है यारों,नजाने कहाँ भागे ||

*सत्यजित*

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1 JUN 2022 AT 1:47

चले गए तुम मगर नायाब गाने छोड़ गए
दिल को छूने वाले तराने छोड़ गए
फ़िर आना और अपनी जग़ह संभाल लेना,
अब तो बस दूर जाने के बाहाने छोड़ गए ||

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27 MAY 2022 AT 10:17

ज़माने से ऊँची उड़ान चाहिए
एक अनोखी पहचान चाहिए
जमीनों में अब कहाँ वो मज़ा रहा,
अब अपना अलग़ आसमान चाहिए ||

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8 MAY 2022 AT 10:54

*ମା*
ସାରା ଜୀବନ ଆମ ପାଇଁ ଜିଉଁଥିବା ମଣିଷକୁ
ଗୋଟେ ଦିନ ଆମେ ଆକାଶକୁ ଉଠାଇ ଦେଉ
ପ୍ରଶଂସାରେ ପୋତି ପକାଇ, ଫୋଟୋ ଛାଡ଼ି, କବିତା ଲେଖି,
ମା' ତୁ' ଆମ ପାଇଁ ଭଗବାନ କହି ||

ମା' ବି ବଡ଼ ସରଳ
ଆମ କଅଁଳିଆ କଥାରେ ଫସିଯାଇ,
ଖୁସି ମନରେ ହସି ଦିଏ, ମନଖୋଲା ହସ ||

ହେଲେ ସତରେ କଣ ଆମେ ବୁଝୁ ମା' ମନର କଥା?
ହୃଦୟଙ୍ଗମ କରିପାରୁ ମା' ଅନ୍ତରର ବ୍ୟଥା?
ମା' କେବେ ଚାହେଁନାହିଁ ଟଙ୍କାପଇସା, ହୀରାଲୀଳା,
ଚାହେଁ ଖାଲି ଆମ ଜୀବନରେ ଖୁସି, ଆଉ ବୃଦ୍ଧାକାଳେ,
ଆମ ଠାରୁ କେଇ ପଦ ମିଠା କଥା, ମନ ହେଲେ କିଛି ସେବା ||

ମାତୃଦିବସ କେବଳ ଏକ ଦିନ
କିନ୍ତୁ ମା'ର ମମତା ଆଗରେ ବହୁତ ଛୋଟ
ମା'ର ତ୍ୟାଗ ଆଗରେ ଏଠି କମ,
ଦିନ, ମାସ ଆଉ ବର୍ଷ
ମା'ପାଦ ଛୁଇଁ ଶପଥ କର,
ଭଲ କାମ କରି ରଖିଦେବା ମା'ର ଯଶ ||

*ସତ୍ୟଜିତ ସ୍ୱାଇଁ*
*ଅଡ଼ଶପୁର, କଟକ*

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