चिंता से चतुराई घटे,
दुःख से घटे शरीर,
ज्यादा बोलने से बुद्धि घटे,
कह गए संत कबीर।
----- कबीरदास-----
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सुन ओ साथी,
'सही' को 'सही' कहो,
'गलत' को 'गलत' कहो,
इसलिए भी 'सही' को 'सही' मत कहो,
कि दुनिया कह रहीं हैं,
और,
इसलिए भी,
'गलत' को 'गलत' मत कहो कि दुनिया कह रहीं हैं,
खुद से पूछ की तेरा दिल और दिमाग क्या कह रहा हैं ?
-Satya Siddharth
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"मैं और तुम"
हाँ मैं बदल रहा हूं,
या शायद बदल गया हूं,
आज कल मेरा सब कुछ बदला सा लगता है,
शांत रहने का मन करता है,
मेरे कपड़े पहनने का तरीका,
मेरे बालों का स्टाइल,
चलने की शैली,
बात करने का तरीका,
सुनने का धैर्य,
पढ़ने लिखने की उत्सुकता,
अंदर की खुशी,
सभी चीज़ों मै रुचि कम हो गयीं हैं,
पता है क्या ?
वो अंदर की चीज खत्म सी हो गयी है,
क्या चीज़ पता नहीं ?
कि किसी से नफरत करूँ या प्यार करूँ,
कुछ समझूँ या समझाउ,
किसी भी चीज़ पर कोई प्रतिक्रिया दूँ या नहीं,
फिर चाहे सही हो या गलत,
सब व्यर्थ सा लगने लगा है,
पता हैं क्यूँ ? क्योंकि ?
तुम भी वो नहीं थे जो मैं आज हो रहा हूं,
मैं आज वही हूं जो तुम शरू से थे,
अगर इसमें कुछ बदल रहा हैं तो वो सिर्फ मैं हूं,
तुम नहीं हो,
'तुम' 'तुम' ही हो, और 'मैं' 'तुम' हो चला,
अब 'मैं' 'मैं' नहीं रहा, क्योंकि 'तुम' दोहरी हो गयीं हों।
-Satya Siddharth-
" मजदूर का पसीना"
देखो इस मजदूर का पसीना,
आता बहार छाती फाड़ कर,
धूल-मिटी में सना,
दुर्गंध भरा,
अथक मेहनत के बाद,
बताता कहानी जिस्म से बाहर आने की,
सर्दी-गर्मी बरसात पतझड़,
बिना किसी जात-पात और धर्म,
ना देखे औरत और पुरुष,
तोड़ सभी बंधन,
बहता जाता बहता जाता,
टपकता धरा पर वर्षा रुपी,
टप टप गिरे अगर खेतों में,
फूटे बनकर बीज बहार,
लहराता फ़ैसले बनकर प्यारी,
देखो ये मजदूरों का पसीना।
गिरे अगर कंक्रीट के जंगलों में ये,
करता निर्माण गगन चुम्बी इमारतो का,
बिना थके बिना रुके,
नदिया रुपी बहता जाता,
सर ले पांव तक एक लय में गिरता जाता,
जब आता मजदूर का पसीना बाहर छाती फाड़ कर,
चाँद पर देखो राकेट भेजता,
सागरों की गहराई नापता,
बिना पसीने संभव नहीं यह सब,
मजदूर मेहनत करता जाता,
सृष्टि निर्माण में अपनी भूमिका निभाता जाता,
देखो जब इस मजदूर का पसीना,
आता बहार छाती फाड़ कर।-
सर्द आंधियां देश और दुनिया में आती रहेंगीं,
हम यूँ ही दीए से जगमगाते रहेंगे,
अपनी रोशनी से हुक्मरानों को जगाते रहेंगे।
✊🏻-
किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंजिल,
के किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंजिल,
कोई हमारी तरफ उम्र भर सफर में रहा।
Unknown-
"The Evil"
He is draw to me,
towards his self,
Often he called me,
Sometimes very low,
Sometimes high,
He attract me in different manners,
Tried to bribe me,
He is trying to stop me ever to do good,
He hold my hand,
And says in my ear,
I can change your world,
You will have be everything,
Whatever you want just come with me,
He told me he likes me,
He lives inside me,
He said he can do everything,
I asked to him,
Who you are ?
He answered,
This world call me "The Evil 😈"
-Satya Siddharth
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Don't judge me,
You just know my name,
But not my story......
...... unknown...
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"Advices"
Advices are free,
There are no costs,
That's why everyone ready to give it,
Without having concern of Your good or bad,
Yes, they don't know your good or bad,
How could they ?
If they are not doing well in their own life,
Although,
they doesn't know about their self,
Then, how could they advice to you.
Now matter is this,
Why the person required to advice ?
Because, there is no faith in self,
That's why,
A person requires to advice.
Advice must be paid,
If a person want to advice you,
That will have to be give the money too,
Now, i can guarantee you,
That person will never advice you.
you would be get right decision by yourself,
Not by others,
Now You will never be regret on it,
you will get right advice by yourself.-