बहरा या गूँगा नहीं, समय रहे बस मौन। बता समय देता सही, कब किसका है कौन। कब किसका है कौन, जानना जो भी चाहे। जब हालत विपरीत, पता उसको लग जावे। सतविंदर कह बात, प्रेम हल्का या गहरा। सुने कहे सब वक्त, समझ मत उसको बहरा।।
पहले जिस पर था फिदा, चला उसी से ऊब तन मन मेरा डोलता, हर मौसम में खूब हर मौसम में खूब, बदलता रहता साथी। गर्मी में कुछ ठंड, धूप जाड़े में भाती। सतविंदर अब प्यार, सियासत जैसा कह ले तज प्रेमी जो आज, भला वह जो था पहले।
एक तपस्वी, जैसा जीवन किया समर्पित अपना तन-मन अटल रहे थे अपने पथ पर मिले पुष्प, काँटे या पत्थर गीता ज्ञान धरा था मन में वह रोशनी दिखी जीवन में हार नहीं मानूँगा ठाना विजय दिवस पाकर ही जाना न झुके देश दिया क्या झुकने नहीं पोखरण पाया रुकने छवि ऐसी जिसके सब कायल कवि, लेखक, नेता तुम प्रतिपल जीवित हो सबकी यादों में और बहुत सारे वादों में।
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Seems Satvinder Kumar Rana has not written any more Quotes.