Satvinder Kumar Rana   (बाल)
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A teacher and reader and lover of literature.
Joined 24 October 2020


A teacher and reader and lover of literature.
Joined 24 October 2020
1 MAY AT 11:03



जिसका तन लथपथ रहे, घुले स्वेद में धूल
उसके कर्मों से बनें, घर-कपड़ा मत भूल

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1 MAY AT 10:43

दुनिया और हँसी को
तुमको और खुशी को
मुझे, मेरी मुश्किलों को
एक साथ होना था।

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14 FEB AT 12:36


बहरा या गूँगा नहीं,
समय रहे बस मौन।
बता समय देता सही,
कब किसका है कौन।
कब किसका है कौन,
जानना जो भी चाहे।
जब हालत विपरीत,
पता उसको लग जावे।
सतविंदर कह बात,
प्रेम हल्का या गहरा।
सुने कहे सब वक्त,
समझ मत उसको बहरा।।


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28 JAN AT 7:38

*शब्द बाण*

पहले जिस पर था फिदा,
चला उसी से ऊब
तन मन मेरा डोलता,
हर मौसम में खूब
हर मौसम में खूब,
बदलता रहता साथी।
गर्मी में कुछ ठंड,
धूप जाड़े में भाती।
सतविंदर अब प्यार,
सियासत जैसा कह ले
तज प्रेमी जो आज,
भला वह जो था पहले।

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25 DEC 2023 AT 19:35

एक तपस्वी, जैसा जीवन
किया समर्पित अपना तन-मन
अटल रहे थे अपने पथ पर
मिले पुष्प, काँटे या पत्थर
गीता ज्ञान धरा था मन में
वह रोशनी दिखी जीवन में
हार नहीं मानूँगा ठाना
विजय दिवस पाकर ही जाना
न झुके देश दिया क्या झुकने
नहीं पोखरण पाया रुकने
छवि ऐसी जिसके सब कायल
कवि, लेखक, नेता तुम प्रतिपल
जीवित हो सबकी यादों में
और बहुत सारे वादों में।

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