प्रेम समझने के लिये प्रेम करना पड़ता है,
ये दावे झूठे हैं ये बातें झूठी हैं।
कभी कभी हम बिना किये
सब समझ लेते हैं,
जैसे ज़हर बिना सेवन किये जान गए।।
✍🏽Satish Nautiyal
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और मौन मिजाज
मेरा 'पर्याय' है।
स्वर्ण हो गये हिमालय अब,
शाम ढलने वाली है।
कामकाजी महिलाएं सब,
घर को लोटने वाली हैं॥
पाऊँ नहीं थकते इनके कभी,
ये सब हिम्मत वाली हैं।
आकर करेंगी चौका-चूल्हा,
ये बहुत बलशाली हैं॥
आसान नहीं पहाड़ी जीवन,
ये पर्वत चढ़ने वाली हैं।
पतझड़ के महीनों में भी,
इनमें सुंदर हरियाली है॥
✍Satish Nautiyal
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तुम्हें लगता है पहाड़ी जीवन सुंदर है, सुगम है
लेकिन हकीकत उसकी दुरूह है, दुर्गम है।
दूर से दिखती चोटियाँ जितनी खूबसूरत हैं
मार्ग उतना जटिल, वह निर्मोही हैं, निर्मम हैं।
पथरीले पथ, रेंगती घाटियाँ चढ़ना आसान नहीं
बर्फीले वन, नदियों का उफान है, उद्गम है।
अप्सराओं का निवास है, शिव का कैलाश है
यहाँ त्यागियों के जीवन का मर्म है, मरहम है।
सिर पर ढोने होते हैं पर्वत जैसे बोझ, हर रोज
ये पहाड़ी जीवन हल्का नहीं भारी भरकम है।
✍Satish Nautiyal-
सुबह सुबह जब जागता हूँ
तो दिखती हैं मुझे
चम चमाती डांडी काँठियाँ।
सुनता हूँ
चहकती घुघुती, हिलांस
चखुलों की बुलंद आवाज़,
और बण जाते गाय भेंसों की
घंडुलियों की मधुर ध्वनि।
जब आता हूँ बाहर
दहलीज़, चौक पर
तो दिखता है फिर
ख़ूबसूरत पंवाली काँठा,
जिस पंवाली से दिखता है
केदार का सुरम्य डांडा।
इस तरह हर रोज़ किस्तों में
सार्थक होते हैं मुझे
बाबा केदारनाथ के दर्शन।
✍🏻Satish Nautiyal-
चलो एक पोस्ट की जगह एक पेड़ लगायें
आओ पर्यावरण दिवस कुछ ऐसे मनायें।
✍🏻Satish Nautiyal
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उसकी मोहब्बत पर कैसे शक करूँ
मेरी आधार कार्ड वाली फ़ोटो पसंद की है उसने।
✍🏻Satish Nautiyal
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She - ज़िंदगी क्या है?
Me - ज़िंदगी ख़ूबसूरत है।
She - ख़ूबसूरत क्या है?
Me - ख़ूबसूरत तुम हो।
☺️☺️☺️☺️
✍🏽Satish Nautiyal
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मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगी कि पागल कर दूंगी
नाचूंगी, गाऊंगी अब के सावन झूम के बरसूंगी।
तुम्हारी डोर मेरे हाथों होगी कुछ इस तरह
सौ बार उलझाकर तुमसे जुल्फें संवारुंगी।
हर रोज गुनगुनाया करूंगी ग़जल तुम्हारी
प्रेम जब करो तुम, अधरों पर सागर भर दूंगी।
सुर्ख गुलाबों से सजाया करूंगी इश्क अपना
तुम्हारी अल्हड़ जिंदगी सयानी कर डालूँगी।
✍Satish Nautiyal
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वादियों में रहना है तो हिफ़ाज़त स्वयं कर लो
वरना तुम भी पहाड़ों से पलायन कर लो।
पेड़ जंगल घाटी शिखर गाँव गली और शहर
सम्पूर्ण प्रकृति को अपना घर कर लो।
आग लगना पहाड़ दरकना रोज़ का है
आंखों को अब विशाल समंदर कर लो।
जंगलों में जिसने भी ये चिंगारी सुलगाई है
उसको वहीं राख करो या उम्रक़ैद कर लो।
जलते पशु तुम्हारे मन को नहीं जला पाए
तो ऐसे मन को तुम श्मशान कर लो।
पर्वत वासियों कोई नहीं आयेगा बचाने को
चुल्लूभर पानी लो या दिल को आग लर लो।
✍🏽Satish Nautiyal-