मुश्कील बहुत है मगर वक्त ही तो है गुज़र जायेगा
जानता हूं कि अपना कोई साथ नहीं देता
फिर भी सब अपनो पर लूटाता चला गया
जब मुझे साथ की जरूरत परि तो अपनों ने ही साथ छोड़ता चला गया
अब मान लिया हूं कि वक्त खराब है अभि
खुद से ही फिर खुद को खड़ा करना ही होगा
मुश्कील बहुत है मगर वक्त ही तो है गुज़र जायेगा …-
हमको आईना देख कर आज तसली हुई कि कोई तो जानता है मुझे,
वरना रिश्ता और नाते सिर्फ नाम का रह गया है…-
"ज़िन्दगी की हक़ीक़त को बस इतना ही जाना है !
दर्द में अकेले हैं खुशियों में ज़माना है !!"-
जिंदगी में ऊतार और चढ़ाओ आता है और आता भी रहेगा,
लेकिन जब अपने लोग आपके विरुद्ध में खड़े हो जाएं तो आप जिंदगी से हार जाते हैं……-
तुझसे दूर होना मेरी मजबूरी नहीं ये तेरी भी मजबूरी है..
हम दोनों एक दूजे के हैं ये तो किसी की मजबूरी नहीं है….-
यकीन तू कर या ना कर, मेरी मय्यत पर जरूर आना…
ये तो यकीन है , तेरा सिकवा और गिला दूर हो जाएगा तुझे खुद से…-
समय सृजन में ही लगता है, 'विसर्जन' में नहीं ,
फिर चाहे वो रिश्ते हो या "जिंदगी"-
अपने वज़ूद पर इतना तो यकीन है मुझे,
कोई दूर हो सकता है मुझसे, पर भुला नहीं सकता....
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नीले अम्बर के जैसा अब ठहरा हुआ हूँ "मैं"
वक़्त के अनेकों वार से बहुत गहरा हुआ हूँ "मैं"
छोड़ दिया "मैं" ख्वाहिशें तमाम अब शोर क्या,
हां अब दिल से पत्थर , गूँगा बहरा हुआ हूँ "मैं"
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