Satish Jha   (Satish chandra jha)
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Joined 21 September 2018


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Joined 21 September 2018
8 OCT 2018 AT 20:44


नारों से कुछ नहीं बदलता ।
देना ही होगा सम्मान ।
बेटी से घर द्वार प्रकाशित
मिले उसे उसकी सम्मान ।।

बेटी से ही शोभा घर की।
बेटी घर आँगन की प्राण ।
बिन बेटी घर सूना सूना,
बेटी से ही उदित विहान ।

बेटी है सम्मान पिता की
माँ की स्नेह भरी मुस्कान ।
बेटी घर की पूज्य लक्ष्मी,
स्नेह प्रेम की निश्छल ज्ञान।।

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16 JAN 2021 AT 13:59

जो भी होना है जीवन में ,
वह होगा ही,यह निश्चित है ।
निज कर्म और कर्तव्यों के,
पथ पर ही भाग्य निखरता है ।
सब कुछ अच्छा ही होगा नित,
यह कैसे संभव हो सकता ।
उत्थान पतन ,सुख दुख खुशियां,
सब कुछ जीवन में मिलता है।
पर धैर्य हमेशा बनी रहे ।
आशा में जीवन सजी रहे ।
क्यों चिंताओं में पड़ना है ।
हर क्षण से ,ख़ुद ही लड़ना है ।।

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12 JAN 2021 AT 21:46

पता नहीं कब चलते चलते ,
पथ पर मैं ही भटक गया ।
दोष समय का देकर मैंने ,
ख़ुद को ख़ुद से दगा किया ।
मिली राह फ़िर किंतु कहाँ अब ,
जीवन का कुछ शेष बचा ।
सपनों की दुनियां का अब तो,
केवल है अवशेष बचा ।।

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21 JUN 2020 AT 10:55

अपने बच्चों के लिए बनूँ ,
इस जीवन में आदर्श पिता ।
मन,वचन और कर्तव्यों से,
मैं बना रहूँ आदर्श पिता ।
बच्चे तो वही सीखते हैं ,
जो उन्हें विरासत में मिलता ।
हम पिता को जो सम्मान दिये,
वह अपने बच्चों से मिलता ।
थे मेरे भी आदर्श पिता ,
जो हर क्षण मेरे रहे संग ।
बाधाओं में हिम्मत देकर ,
जीवन में भरते रहे रंग ।
उन सभी पलों को आज हृदय,
स्मृतियों में, है ढूंढ रहा ।
है नमन उन्हें ,जिनकी बातें ,
हर क्षण ,दुःख-सुख में शेष रहा।।

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7 MAY 2020 AT 22:08

ओह! कोरोना !!
अब समय के साथ चलना ,
है कठिन किससे कहूँ ।
बंद दरवाज़े घरों में ,
क़ैद मैं कब तक रहूँ ।
आ गई कैसी बला जो,
दूरियाँ रिश्तों में लाया ।
मिल नहीं पाता किसी से ,
भय हृदय में है समाया।
भूख से रोते बिलखते,
चल रहे मजदूर पैदल ।
था बसाया जिस शहर को,
बन गया अनजान हर पल।
खेलते बच्चों की तुमने ,
गूँजती किलकारियों को ।
बंद कैसे कर दिए हो ,
मंदिरों की घंटियों को ।
--- सतीश झा





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1 MAY 2020 AT 16:24

मजदूर दिवस
कुछ अच्छे अच्छे शब्द ढूंढ ,
भाषण होंगे मजदूरों पर ।
अखबार न्यूज टी वी चैनल,
गुण गायेंगे ,मजदूरों पर ।

हैं लाखों भूखे पड़े हुए ,
सड़कों पर जो हर ओर विवस ।
उस करुण दृश्य को भूल आज ,
हम मना रहे मजदूर दिवस ।

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23 AUG 2019 AT 14:16

आओ मेरे कृष्ण हृदय में आकर मुझे बसा लेना।
मधुर बाँसुरी की कोई धुन, आकर मुझे सुना देना ।
धन्य हमारी होगी जीवन , तेरे पग की आहट से ,
राह देखता हूँ मैं कब से, ख़ुद में मुझे समा लेना ।।

तुमसे ही जग की सुंदरता, खग मृग जंगल ताल तलैया।
तुमसे ही जीवन की सारी प्रेम, प्रेरणा मन की खुशियां।
तुम्हीं ज्ञान- अज्ञान, ध्यान भी तुम्हीं मनुज के लिए कन्हैया ।
राधा के तुम,मीरा के तुम,कण कण के तुम ही रखबैया ।।



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22 AUG 2019 AT 8:37

कोरा कागज पूछ रहा है,जीवन के उलझे -सुलझे पल।
दुख की बातें, सुख की बातें, और हमारे बीते कुछ पक।
किन्तु कलम की धाराओं में डूब उतारना ,डर लगता है।
मन की बातें कैसे कह दूँ, खुद ही ख़ुद से डर लगता है ।।

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21 AUG 2019 AT 13:18

मैं बहुत चाहता हूँ तुमको,हो सके कभी आकर मिलना।
करना दरबाजे बंद भले ,सपनों के द्वार खुले रखना ।

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21 AUG 2019 AT 13:00

ये कर्म क्षेत्र है यहाँ बैठ कर, समय बिताना उचित नहीं है।
भाग्य भरोसे सुख में जीवन, जीते रहना उचित नहीं है।
चलना होगा अंतिम क्षण तक, तभी जीत 'जय' होगी ।
अंगारो से चलकर ही तो , कुछ विश्राम मिलेगी ।।

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