खुदी को खुदी से,अलग कर रहे हो।
बड़े सितमगर हो,ये क्या कर रहे हो।।
है तुम से मोहब्बत,उम्मीद भी तुम्ही हो।
तो कत्ल सारे रिश्तों का,क्यूँ कर रहे हो।।
कभी जिसके लिए,तुमने छोड़ी थी रोटी।
सतेन्द्र,उससे गिला फिर,क्यूँ कर रहे हो।।
है कद उसका ऊँचा,है घर उसका ऊँचा।
वो भाई है तुम्हारा, तुम क्यूँ जल रहे हो।।
हो रही है,अब उनको,बड़ी बिलबिलाहट।
तुम सब,आपस में चरचा,क्यूँ कर रहे हो।।
अगर डरना है, तो केवल,रब से डरो तुम।
जुल्म-ओ-जालिम से तुम,क्यूँ डर रहे हो।।
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
-