Satendra Pratap Singh  
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Joined 9 March 2024


Joined 9 March 2024
15 APR AT 13:42

कितने गिरे हुए लोग हैं कितनी है सोच बिचारी!
किसी ने गद्दार कहा हमें किसी ने पगड़ी उतारी!!
ना जाने क्यों खिलाफ है हमारे यहाँ पर हर कोई!
हमसे तो जितना भी हुआ सबकी इज्जत संवारी!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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14 APR AT 0:03

आजमा रहे हैं मुझको आजमाने वाले!
मुझे अपना बता रहे हैं दगा देने वाले!!
मौसम चुनाव का है माहौल मस्त है!
चारों तरफ हैं अब तो मजा लेने वाले!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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13 APR AT 23:06

कुछ दिन तुम्हारे लिए भी रखे हैं हमने!
जवाब सवालों के लिख रखे हैं हमने!!
सतेन्द्र जो पूरे ना हो सके कभी भी ऐसे!
वायदों के गुलदस्ते बना रखे हैं हमने!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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13 APR AT 23:00

कुछ दिन तुम्हारे लिए भी रखे हैं हमने!
जवाब सवालों के लिख रखे हैं हमने!!
सतेन्द्र जो पूरे ना हो सके कभी भी ऐसे!
वायदों के गुलदस्ते बना रखे हैं हमने!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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12 APR AT 23:01

लालच का रावण बसा है जिगर में!
रोग तो यह खानदानी हो गया है!!
अब भी उबलता है रक्त रंग में!
या की सब पानी हो गया है!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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12 APR AT 22:10

ना दुखा दिल किसी का इस कदर!
तेरे वास्ते भी इक श्मशान है!!
बद-दुआ लगी है शायद किसी की!
तभी तो तू इतना परेशान है!!
मत कर परेशां जरा रहम खा ले!
सामने वाला भी इंसान है!!
ना कमी है जहां में किसी चीज की!
एक से बड़ा एक बलवान है!!
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
9837491576/7983359540

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8 APR AT 19:41

खो जाता है सब कुछ उनका।
जो ओढ़ कर चादर सोते हैं।।
अपनों के बिना जीना कैसा।
अपने ही तो अपने होते हैं।।
दुनिया कहती गद्दार उन्हें।
गैरों का संग जो देते हैं।।
सिंहासन का ना लोभ हमें।
दिल में अपनों के रहते हैं।।
इसलिए यहां सब लोग हमें।
बाग़ी वैरागी कहते हैं।।
सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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8 APR AT 10:18

खुदी को खुदी से,अलग कर रहे हो।
बड़े सितमगर हो,ये क्या कर रहे हो।।
है तुम से मोहब्बत,उम्मीद भी तुम्ही हो।
तो कत्ल सारे रिश्तों का,क्यूँ कर रहे हो।।
कभी जिसके लिए,तुमने छोड़ी थी रोटी।
सतेन्द्र,उससे गिला फिर,क्यूँ कर रहे हो।।
है कद उसका ऊँचा,है घर उसका ऊँचा।
वो भाई है तुम्हारा, तुम क्यूँ जल रहे हो।।
हो रही है,अब उनको,बड़ी बिलबिलाहट।
तुम सब,आपस में चरचा,क्यूँ कर रहे हो।।
अगर डरना है, तो केवल,रब से डरो तुम।
जुल्म-ओ-जालिम से तुम,क्यूँ डर रहे हो।।
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले

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7 APR AT 10:04

जीतने को रणभूमि में तैय्यारी रहनी चाहिए।
चाहें तुम जिधर रहो हिस्सेदारी होनी चाहिए।।
मेरी रह गुजर के वास्ते हैं काम तो वैसे बहुत।
नौकरी अगर मिले तो सरकारी होनी चाहिए।।
- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले

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7 APR AT 8:01

गुल-ए-गुलशन ना रहे फिर से वीराने हो गए।
ख्वाब जो हुए सुफल फिर वो पुराने हो गए।।
मिले हम तुम सुन्दर सा अपना परिवार बना।
हुए बड़े बच्चे हम तुम फिर से अकेले हो गए।।
-- सतेन्द्र वैरागी दशहरा वाले
7983359540/9837491576

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