इस जीवन में मेरे , प्रथम माँ ही गुरु है
जीवन जिससे इस नाचीज़ का शुरू है
दूसरे गुरु मेरे पिता , जिन्होंने मुझे पाला
जन्म से अब तक , हर हाल में सम्भाला
तीसरे गुरु शिक्षक जिसने कलम थमाई
जिसकी शिक्षा से जीवन में रौशनी आई
चौथे गुरु ईष्ट , जो मेरे परम आराध्य है
जिनकी मर्जी संपूर्ण , संसार पर बाध्य है
पांचवे गुरु मेरे संत , जहां ली मैंने शरण
जहां नवता है सिर , उनके पाते ही चरण-
जो कह नहीं सकता ,लिख देता हूं हर उस बात को
क्या बात है दोस्त , तुम आज एकदम ही उदास हो
कुछ प्राप्त नहीं हो पाया शायद इसलिए निराश हो
सब को मिलता है अलग समय पर , अलग स्तर से
बस जरूरी है कि भटके न हम ,तय की गई डगर से
तुम्हें भान नहीं क्या अपनी ,अतुलित क्षमताओं का
जो ठान लो तो बदल सकते हो ,रंग भी लताओं का
दो शब्द किसी के आखिर ,तुम्हें इतने क्यों चुभ गए
कि खुद पर तुम संशय करके , अधर में ही रुक गए
वो तोड़ रहे हैं मनोबल ,तो तुम उनके इरादे तोड़ दो
सब भुलाकर कर्म करो ,बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दो
वक्त विपरीत है लेकिन तुम्हारी कोशिश तो सही है
और बिना कोशिशों के मिलता हो , ऐसा भी नहीं है
जरा धैर्य रखो मित्र , एक दिन तुम भी सब पाओगे
जिनसे गालियां खाईं हैं ,उन्हीं से मिठाई भी खाओगे-
सबके दुलारे है ये और , सबको इनसे प्यार है
घर की हर चीज़ पर इनका पहला अधिकार है
पढ़ाई से संबंध इनका , विपरीत है और शून्य
पर नींद और मोबाइल से जुड़ाव अपरम्पार है
हर पल मजे से , हर दिन सिद्दत से बिताते
न माथे पर शिकन है , न ही कन्धों पर भार है
संगीत बेहद प्रिय और प्रिय भोज इनका मैगी
यह दो चीजे ही मुख्यतः , जीवन का आधार है
खुशी , गम , कहानी , हर बात जो हो कहना
सोनू से सब कह देते हैं , इनका सोनू संसार है-
कोई विकास , कोई जॉब , कोई सुकून ढूँढता है
वो पता नहीं क्यों हर वक्त , बस खून ढूंढता है
धर्म की आड़ लेकर ये , जो तुम काम कर रहे हो
धर्म कभी नहीं कहता , तुम बदनाम कर रहे हो
निर्मम हत्याएं कर , देश का सौहार्द भंग किया है
जिसका दोष नहीं था ,तुम ने उसको तंग किया है
बिना सोचे बिना समझे , सीधे खंजर उतार दिया
मात्र इसलिए कि हिन्दू थे , बेचारों को मार दिया
न जाति पूछी , न राज्य पूछा , न भाषा को जाना
दुश्मन ने भी मृतक को सिर्फ एक नजर पहचाना
इतना सब हो रहा है ,फिर भी हम आपस में बंटे हैं
खुद को वंचित शोषित पीड़ित सिद्ध करने मे डंटे हैं-
जो राम के भक्त शिव के अंश और सत्येंद्र के ईष्ट है
जो देवों के लिए भी आदरणीय और परम विशिष्ट है
जो आंजनेय ,मारुति , महाबली , नामों से मशहूर है
जिनके लिए न शनि कठिन है ,और न ही सूर्य दूर है
जिसके आगे लोभ ,क्रोध भय , शरण पड़े रहते हैं
पर्वत , सिंधु अनल वरूण , सब त्राहि त्राहि करते हैं
जो शक्तियों में अतुलित हैं और ज्ञान में अपरंपार है
जिसके स्मरण मात्र से ही , मनुज का होता उद्धार है
जिसे अष्ट सिद्धि और नौ निधियां ,वरदान मे प्राप्त हैं
जिसके दर्शन से ही संकट सारे , हो जाते समाप्त हैं
जो अजर है ,अमर है , अमित , अनुपम अविनाशी है
जो हर दिक , हर युग और हर कण के वासी हैं-
इन तमन्नाओं का बोझ लिए हम , कहां कहां जाएगे
जिस कोने में हम पहुंचेगे , हम से पहले वहां आयेगे
एक दिन सांसे पूरी हो जाएगी , लेकिन तमन्नाएं नहीं
उम्र बीत जाएगी समझने में , तब बस आंसू बहा पायेगे
अम्बार लगा हो खुशियों का , फिर भी दुख लगेगा बड़ा
छोटा कर दे जो हर दुख को , वो सुख न कमा पायेगे
प्राप्त सब कुछ कर ले , इतना सामर्थ्य नहीं इंसां में
आखिर मिट्टी से ही उपजे है , और उसी में समा जाएगे
पाने की तड़प ,न मिलने की कसक का संयोग है जिंदगी
इन समीकरणों को कभी ढंग से , शायद ही जमा पायेगे-
हर तरफ हो शांति और हर तरफ अनुराग हो
न द्वेष हो , न बैर हो , ऐसा यहां पर फाग हो
मुस्कुराहट लब पर हो , हर कष्ट से मुक्ति मिले
मन सदा निर्मल रहे , बस वस्त्रों पर ही दाग हो
मित्रवत संबंध सबसे , तनिक भी न शिकवे रहे
समता का हो भाव , चाहे स्वान हो या काग हो-
आसान नहीं इतना , उस लक्ष्य तक पहुँचना
तनाव ,क्रोध चिंता आदि से पड़ता है लड़ना
कभी लगता कि सब कुछ है अपने अनुकूल
कभी लगता है कि जैसे है ,सब कुछ फिजूल
देखकर यह स्थिति , खुद पर तरस आता है
मन बेहद कचोटता है , नैन बरस जाता है
फ़िर कोई आशा की किरण सम्भाल लेती है
जो निराशा के बादलों को ,पुनः टाल देती है
मैं उठ खड़ा हो जाता हूं ,उसी ऊर्जा के साथ
खुद को मजबूत बना , दर्द को करके अनाथ-
तौहीन कोशिशों की होगी , जो सोच नतीजे चिंतित हो
व्यर्थ तुम्हारी रणनीति , यदि जरा जरा पर विचलित हो
संघर्ष पथिक तुम हठधर्मी ,मंजिल का पीछा मत छोड़ो
सामर्थ्य भरा है इतना कि जित चाहो रुख को उत मोड़ो
जो ठाना था वो मिलना है , कब तक यूं आखिर भागेगा
जब कमी नहीं है श्रम में तो , भाग्य भी एक दिन जागेगा
सन्योग अलग है सबके और अलग अलग है तकदीरें
वक्त अलग रहता सब का , पर बनतीं सबकी है तस्वीरें-
दो सरिताओं के मिलने से , जल का होगा आना जाना
मध्यप्रदेश के हिस्से में ,नया लिखा जा रहा अफ़साना
न पानी की किल्लत होगी , न बाढ़ कमर अब तोड़ेगी
केन - बेतवा अतिरेक नीर को , दौधन बांध में जोड़ेगी
नहर बनेगी बाँध से फिर , वो मीलों गांवों से गुजरेगी
पिछड़ा था जो क्षेत्र बहुत , अब उसकी किस्मत सुधरेगी
तेरह जिले जुड़ेंगे कुल , जो लाभ युगों तक खुद लेगे
जीव , जंतु , जलचर , पौधे , इनके भी जीवन बदलेगे
और सूखे से हो रहा नष्ट , अनमोल अन्न बच जाएगा
जिस खेत को जितना इच्छित हो वो उतना पानी पाएगा
स्वाभिमान वापस होगा , अब न कर्ज तले मरना होगा
बिजली से रोशन होगी भू , हर घर नल का झरना होगा-