Satabdi Pradhan   (Satabdi Pradhan)
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A PEN FOR A CHANGE ✍️
Joined 25 October 2018


A PEN FOR A CHANGE ✍️
Joined 25 October 2018
7 OCT AT 9:05

कितना कुछ छूट जाता है पीछे
परिजन, स्नेह और अपना शहर का अवशेष,
बच्चों की शरारतें, देर से उठने की आदत,
बेवक़्त दोस्तों से मिलना और यूँ ही घूमना।

बारिश के लौट जाने की गूंज और ठंड की आग़ाज़,
पर्वों का अंत और मोहलत भरी छुट्टियों का
धीरे-धीरे ख़त्म होना।

ज़रूरी लगने लगा है आगे आने वाला शहर,
कामकाज और भागदौड़ भरे पहर।
काम से लौटने में जितनी उत्साह थी,
फिर काम में लौट जाने में उतनी ही मायूसी!

हम निकल आते हैं घर से,
घर कहाँ निकल पाता है हमसे।
चिड़िया भी सपने संजोती है आसमान के,
घोंसला छोड़ती है — नया घोंसला बनाने की खातिर!

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25 SEP AT 12:55

स्थिर नहीं हैं जलधाराएँ,
वे बहती हैं निरंतर,
पहाड़ की चोटी से, हज़ार रास्तों से,
खेत-खलिहान से, गाँव और शहरों से।

वो फूलती हैं कभी कभी
होते हैं निम्नगामी भी
त्याग देती हैं आसमान की ऊँचाई का सुख,
देखती हैं बादलों का गरजता मुख।

कभी आती हैं प्रबल धाराओं के रूप में—
शायद परिवर्तन के संकेत स्वरूप।

प्रेमी ढूँढता है खिड़की,
किसान ढूँढता है बीज और मिट्टी।
कवि खोजते हैं शब्द,
और बच्चे बस छुट्टी।

हमें भी शायद होना था धारा—
जिसके होने से, जिसके आने से
कोई तितलियों-सा महसूस करे,
कोई मोर-सा नाचे।
कोई प्रेम की बारिश में भीगे,
कोई कागज़ की नाव बनाए,
और कोई कल्पना में खो जाए।

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25 JUL AT 21:35

पत्ते गिरने लगते हैं पेड़ों से धीरे धीरे
नदियां छोड़ आती हैं पहाड़ की ऊंचाई
बारिश कहां टिकता है आसमान के पास
घोंसला छोड़ते हैं पंछियां उड़ान भरने को

दुधमुंहे बच्चे कहां सरल रहते हैं उम्र भर
बेटियां छोड़ते घर, घर बसाने को
शिक्षक उंगली छोड़ कर, उंगली दिखाते हैं भविष्य निर्माण के तरफ
हम पीछे छोड़ आते है अपना शहर जिम्मेदारियों के खातिर

शायद प्रवाहित होना नदी है
और रुक जाना समन्दर जैसा भारी
शायद चलते रहना जीवन है
और ठहराव मृत्यु जितना शांत!

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14 JUL AT 20:34

ତମେ ଆସନ୍ତନି ?
ଜୁଲାଇର ପ୍ରଥମ ସପ୍ତାହରେ ଅସରାଏ ଝଡ଼ି ବର୍ଷା ହେଇ
ଅଥବା ଏଇ ବର୍ଷା ଭିଜା ଅପରାହ୍ନ ରେ ଅସ୍ତରାଗ ପୂର୍ବର ଇନ୍ଦ୍ରଧନୁଟେ ହେଇ

ତମେ ଆସନ୍ତନି ?
ଏଇ ବର୍ଷା ରେ ଛତା ଅବା ଛାତ ତଳର ଆଶ୍ରୟ ହେଇ
ନହେଲେ ସନ୍ଧ୍ୟା ଚା ର ସୁଆଦିଆ ମୃଦୁ ବାସ୍ନା ହେଇ

ତମେ ଆସନ୍ତନି?
ନୀଳାଦ୍ରି ବିଜେ ହେବା ଆଗରୁ ଥରେ ମୋ ସହ ଥରେ ଜଗା ଦର୍ଶନ କରିବା ପାଇଁ
ଅଥବା ଶ୍ରାବଣ ସୋମବାର ରେ ମୋ ମାନସ ପଟର ମାନସିକଟେ ହେଇ

ମତେ ଆସେନା ମାନଭଞ୍ଜନ ରସଗୋଲା ଦେଇ
ହେଲେ ଜାଣେ ତମ ଚା ରେ କେତେ ଚିନି ପଡ଼ିବ
ତମେ ଆସିଲେ ମତେ କଣ ସବୁ କହିବ
ଜାଣେ ଦେଖା ହେବା ଠାରୁ ଦେଖା ହେବାର ଅପେକ୍ଷା ବେଶୀ ମିଠା!

ତମେ ଆସିବ ନା ?


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24 JUN AT 17:06

हमने चेहरे और फसलें खिलते देखा
प्रेमियों और मोर को नाचते देखा

भीगते हुए मजदूरों को आराम करते नहीं देखा
बेघरों को छत या छतरी के नीचे नहीं देखा

हमने बारिश का दूसरा रूप नहीं देखा !


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21 MAY AT 9:35

प्रेम और प्रार्थना

प्रेम में हम बच्चा बन जाना चाहते हैं
और प्रार्थना हमें बच्चा बना देती है
प्रेमी और ईश्वर के आगे
हम होते हैं निस्वार्थ, सरल और समर्पित

मिलने तक सब्र कहां कर पाते हैं
प्रेम हो या ईश्वर; हमें पहले चंचल बनाते हैं फिर शांत
जब तक विरह के आंसू नहीं आते
जब मिलन की व्याकुलता नहीं आती
कहां मिलता है ईश्वर या प्रेम

जब तक त्याग की भावना न हो
कहां बन पाते हैं हम भक्त या प्रेमी
गोविंद कहां आते हैं जब तक पांचाली
वस्त्र छोड़ कर हाथ न उठाती समर्पण में!

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18 MAR AT 21:15

ବସନ୍ତ

ଆଜିକାଲି ନିଦ ଭାଙ୍ଗେ ଆବର୍ଜନା ଗାଡ଼ି ର ଶବ୍ଦ ରେ । ଆଉ ଶୁଭେନା କୋଇଲି ର କୁହୁ। ପଳାଶ ଘରକୁ ଆସିଲେ ଜାଣୁଥିଲୁ ମାଆ ମଙ୍ଗଳାଙ୍କ ପୂଜା ହବ ବୋଲି...ଏବେ କର୍ମମୟ ଜୀବନ କାହିଁକି ରାସ୍ତା କଡ଼ରେ ଫୁଟିଥିବା ପେନ୍ଥା ପେନ୍ଥା ପଳାଶ ପରି କେବେ ସୁନ୍ଦର ତ କେବେ ବାସ୍ନାହୀନ ଲାଗେ । ମାଆ ଆମ୍ବକଷି ଖାଇବାକୁ ମନା କରେ ବୋଲି ଜାଣୁ ଥିଲୁ ଏ ଯାଏଁ ଦୋଳ ଆସିନି; ଏବେ ବଉଳ ମହକ ବି ଆସେନା ଘର ଅଗଣାକୁ ହେଲେ fridge ରେ ଥାଏ mango juice .. ସୋସିଆଲ ମିଡିଆ ରେ ଫଟୋ ଉଠାଇବାର ବ୍ୟସ୍ତତା ଭିତରେ ଆମେ ଭୁଲି ଯାଇଛୁ ଦୋଳ ପୂର୍ଣ୍ଣିମା ରେ ରାଧା ମାଧବ ଫଗୁ ଖେଳନ୍ତି ବୋଲି...

ଆଉ ଶୁଭେନା ଅକ୍ଷୟ ମହାନ୍ତିଙ୍କ 'ହେ ଫଗୁଣ ତୁମେ ଗଲା ପରେ ପରେ...'
ସ୍ମାର୍ଟ୍ ସିଟି ରେ ଆଖି ଖୋଜେ ନୂଆ ପତ୍ର ଭରା ଗଛଟେ,
ଆଉ ବେଳ କାହିଁ ବସନ୍ତକୁ ମନଭରି ଉପଭୋଗ କରିବାକୁ !

~ ଶତାବ୍ଦୀ ପ୍ରଧାନ

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20 FEB AT 18:39

अपनी प्रेमीयों के दिल में घर बनाने वाली प्रेमिकाऐं
अक्सर नहीं बसा पाती घर प्रेमियों के साथ,
संघर्ष के दौरान हाथ थामने वाली
सुहाग के नाम पर नहीं थाम पाती हाथ ।

प्रेमी के माथे की शिकन हटाने वाली
प्रेमिकाओं के माथे के हिस्से सिंदूर नहीं आती,
पत्नियां नाम नहीं लेती जिनके
प्रेमिकाएं उनको सौ नामों से बुलाती ।

पत्नियां ले आती हैं दहेज़, मर्यादा और अधिकार
प्रेमिकाएं छोड़ कर जाती हैं तौफे, शिकायतें और अधूरा प्यार,
पत्नियां इंतजार करती हैं जिस चांद को करवाचौथ पे
प्रेमिकाओं को तोला जाता है उसी चांद के साथ  ।

प्रेमिका ख़रीद के ले आती है गुलाब तौफे में
पत्नियां सींचती है पानी, पौधों से घर सजाती,
पत्नियां रुक्मिणी बन जाती हैं विवाह में
प्रेमिकाओं को राधा कह के दुनियां बुलाती ।

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30 JAN AT 11:07

For how long you keep looking them back after they leave
What you give someone before departure
How many times you assure eachother to stay in touch
What you choose to cook for them
The words you tell eachother just before leaving
The amount of helplessness your palm holds just before waving goodbye
Wheather you burst into tears once a while
or pretend to be their strength with a heavy heart
How you tick all your bucket lists as if love is an assignment
How you hold eachother to hold onto time
What you choose to do in their absence

No matter how hard you try, goodbyes are not easy.

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3 AUG 2024 AT 20:26

जब तुम्हारे होंठ स्वाभिमान की बातें करता हो,
चूड़ियों से पहले अधिकार थामना जानता हो ।
माथे पे बिंदी के साथ अपनी पहचान भी सजी हो,
जूड़ा से पहले तुम खुद को समेटना जानती हो ।
शृंगार से ज्यादा संघर्ष जो तुम करती हो ।
आत्मविश्वास का दुपट्टा ओढ़े और भी खूबसूरत लगती हो ।।

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