बारिश थमी ही थी, कि फिर बरसात हो गई. सवेरा तो हुआ ही न था, कि मेरी रात हो गई. "सानु" जलाया तो था मैंने चिराग यहाँ पें, पर लौ के साथ, मेरी उम्मीदे भी खाक़ हो गई.
काश कोई मिले, जिसको कुछ कहना हैं.. मोहब्बत में ना सही, पर मोहब्बत से रहना है.. मानता ही हैं कहां यह दिल, बङा खुदगर्ज हैं.. इसे तो बस चैन में रहकर भी बैचैनी मे रहना हैं..
मै नही चाहता, कि तेरी यादों में खो जाऊ. कुछ पल सुकूं के लिये, फिर से रो जाऊं. 'सानु' मुद्दतो से संभाला हैं मैने, अपने आप को, नही चाहता, कि फिर अश़्को में खुद को भिगो जाऊं.