जो मैं बात न समझा, तो जज़्बात क्या समझाना ।
रखना है? तो रखो दिल में, करो न कोई बहाना ।।
मुझे तेरी छांव है प्यारी, मेरा अब से वही ठिकाना ।
लगी जो आग तेरे दिल में, तो जलेगा ये दीवाना।।
माना टूटी होगी, कोई साख तेरे किसी ख्वाहिश की ।
कुछ पत्ते बिखरे होंगे, था हवा के झोंको से टकराना ।।
पूछो तो परिंदे से उसका हाल, अगर दर्द है समझना ।
जिसकी दुनिया थी वो साख, था वो जिसका ठिकाना ।।
आस है तुमसे, कभी मेरा मुझमें होकर तुम भी आना ।
पता चलेगा जो रोटी लाई घर, वो अपने खून से साना ।।
कितना कुछ कहता सुनता रहता हूं, दिनभर दुनिया में ।
किंचित रहता हूं व्यस्त, गंतव्य तो तेरी ओर है आना ।।
कहने की वो मजबूरी होगी, जो तुम न समझ सकोगी ।
दुनिया त्यज्य तेरी ओर मैं आऊं, बस तुमको है पाना ।।
रखना है? तो रखो दिल में, करो न कोई बहाना ।।1।।
मेरी कलम से 'सरस'-
शीर्षक "एक साथी मित्र...व्यथा"
कोई रिश्ता तो नहीं था उनसे, पर वो.... ख़ास तो थी
कोई तलब तो नहीं थी , लेकिन कहीं वो आस तो थी
जैसे भी थे रिश्ते, अपने दरमियां खूबसूरत ही थे
ताज़गी, जिंदादिली, हाजिरजवाबी, सीरत भी थे
उसका कभी बात करना, सबको रास नहीं आया
दोस्त होकर भी मजबूर, वो कभी पास नहीं आया
कुछ मुश्किलों से, जिंदगी गुज़र रही थी उसकी
देखे थे मैने आंसू, खामोशी और दर्द की सिसकी
क्या जाने किस मोड़ से जिंदगी उसकी गुज़र रही थी
वो दिखाने को हंसती थी, लेकिन अंदर वो मर रही थी
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मेरी कलम से 'सरस'
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शीर्षक "उसका मिलन..एक ख्वाहिश"
जिस्म बेबस सा है उसका.... मुझपे पड़ा
धडकनों का धड़कना........ कितना बढ़ा
है मंजिल की परवाह... ...किसको यहां
खूबसूरत सफ़र... साकी खुद ...मय यहां
पी लेने दे कहर की ........आखिरी घूंट तक
कर सेहर, हो बसर बस ......इसी जाम तक
मैं था राही .....वो मेरी हमसफर हो गई
दिखा के हुस्न..... वो पूरी ज़हर हो गई
कैद था अब तलक .....उसकी अदाओं में कहीं
आज घायल हुआ जो ........कुछ बचा ही नहीं
मेरी कलम से 'सरस'-
थी चाह बड़ी मेरी उसको, अब तो जैसे हूं बेकार,
मधुर वाणी से शुरुआत हुई, अब आती है हुंकार।
पढ़ा लिखा सब व्यर्थ, बस अब तुमसे है दरकार,
जुल्मी पत्नी के खिलाफ़, बिल पास करो सरकार।
मीठे मीठे सपने देखे थे, करूंगा कैसे कैसे प्यार,
बचा लो मुझे, शादी करके कहां फंस गया यार।।
पहले आप मनाती मुझको, देती थी बहुत दुलार,
पासा पलटा शादी के बाद, अब कर देती दुत्कार।
अब दिखता है रूप उसका, जो था परदे के पार,
स्वप्नसुंदरी हिंसक हो गई, मेरा करती है शिकार।
हिम्मत नहीं बची मुझमें, अब हो गया हूं लाचार,
बचा लो मुझे, शादी करके कहां फंस गया यार।।
एक रोज़ की कहूं व्यथा, मैं हो गया था बीमार,
वो आई मेरी सेवा करने, हो विमान पर सवार।
खाना बना रहा हूं खुद मैं, वो बातों में होंसियार,
स्टेटस लगा खाने का उसने, जीत लिया संसार।
उसकी सेवा करता हूं, सहता सारे उसके प्रहार,
बचा लो मुझे, शादी करके कहां फंस गया यार।।
कुछ बोल नहीं पाता मैं, उसके आंसू है हथियार,
चंडी का वो रूप पकड़ ले, हो जाती सिंह सवार।
कांप रहा हूं डर के मारे, करता उसकी जै जै कार,
कैसे बचता हूं, क्या बयां करूं अब आए अश्रुधार।
वो बन गई घर की मालकिन, मैं उसका चौकीदार,
बचा लो मुझे, शादी करके कहां फंस गया यार।।
मेरी कलम से 'सरस'-
किसी और का होकर भी, कोई खास हो सकता है,
तूं ख्वाहिसो में न सही, मेरी अरदास में हो सकता है।
माना की तूं हासिल है, अब किसी और के वास्ते,
निगाहों से दूर होकर भी, दिल के पास हो सकता है।।
मेरी कलम से 'सरस'-
कि सूख गया वो दरिया, वो किनारा न रहा।
न वो रहा , उसकी बातों का सहारा न रहा ।।
हमें बितानी है जिंदगी, उस मंजर के सहारे ।
दाग बचे है जिसके, कोई अब नजारा न रहा।।
मेरी कलम से 'सरस'-
आज फिर होठों पर, वही बात आई है,
आंसुओं को पीने की, सौगात आई है।
जरा रुको, ठहर जाओ, ये जश्न तो देखो,
ये जिंदगी ही, मेरे मौत की बारात लाई है।।
मेरी कलम से 'सरस'-