पता नहीं कितनी,
पर अब शायद थोड़ी बीमारी तो है,
और शायद थोड़ा इलाज भी,
इस छोटी शब्दमाला में,
शायद अब मान लिया जाए इसे एक बीमार कविता,
और उतर जाए ये उस मांग पर खरी,
जो चाहती थी, एक बीमार कविता!-
कुछ ख़ुद भी समझ लीजिए!
Biochemical Engineer by profession.
Researcher by insti... read more
एक बीमार कविता,
हां, फरमाइश ही कुछ ऐसी थी,
पर पूरी न हो सकेगी शायद!
हर दिल अज़ीज़, हरफनमौला,
हंसमुख, मासूम, और सीधी सच्ची होनी चाहिए थी ये,
बीमार तो नहीं हो सकती वो कविता,
जो लिखी हो किसी मनपसंद भाई के लिए!
ख़ैर, बीमार कविता लिखो बोला है,
सोचो,
कैसे लिखदूं कि, सच्चा मन बीमारी है?
कैसे लिखदूं कि, भोलापन बीमारी है?
कैसे लिखदूं कि, स्वच्छंद मुस्कान बीमारी होगी,
कैसे लिखे कोई, गर लिखा तो जरूर लाचारी होगी!
पर फ़िर भी,
बोला है, बीमार कविता लिखो!
हां, तो लिख देते हैं!
पर,
सीधे मन को, भोलेपन को,
संवेदनाओं से उपजे, संजीदे चयन को,
बेबाक मुस्कान को, सबको दिए सम्मान को,
मेहनत की तरंग को, आशाओं की उमंग को,
माथे के तेज को, वाणी के वेग को,
आंखों की अठखेली को, शीश की बेली को,
बीमारी नहीं कहते,
इसे कहते है संस्कार!
समाज के ऐसे लोगों में ही,
मन भर संस्कार रहते हैं!
समाज के ठेकेदारों को लगते हैं,
बीमार, गरीब, बेचारे, और मध्यमवर्गीय से,
वास्तव में होते हैं उच्च कोटि के कुलीन व्यक्तित्व!
हां, हमे दूर करनी होगी,
ये सामाजिक बीमारी,
अच्छे को बीमार, और बहुत बीमार साबित करने की!
-
न ज़मीं, न छत, न चारदीवारी, न घर,
धूप की जलन, लू के थपेड़े,
बारिश के कहर, ज़ख्म सर्दी के गहरे,
सब झेलता, चुपचाप,
सहता, सहमता, सधा रहता था,
हां, वही जिसको भिखारी समझ एक सिक्का दिया था किसी ने सड़क पर,
वहीं बच्चा, आज चौबीसवीं मंज़िल पर बैठा है!
फांकों से लड़ता, भूख से झगड़ता,
भीख पर जिंदा, बैल सा जुत कमाता,
इज्ज़त की नमक- रोटी, खुद्दारी से खाता,
यही चाहता, चुनता, चखता,
चुपचाप, गुमसुम, रहता था,
हां, वही जिसको मुफ़्त का खाने के लिए आ जाता है बोला था किसी ने एक शादी में,
वही बच्चा, आज चौबीसवीं मंज़िल पर बैठा है!
न कुप्पी, न बिजली, न पुस्तक, न तिदरी,
अंधेरों में गुम, आशाओं की रोशनी से प्रेरित,
रोशनदानों से सड़क वाली रोशनी खींच,
पढ़ता, पलता, पालता,
समझता, अपने में गुम रहता था,
हां, वही जिसको इसका कोई भविष्य नहीं है बोलकर घर से निकाला था एक रोज किसी ने,
वही बच्चा, आज चौबीसवीं मंज़िल पर बैठा है!
जब कुछ न था संग,
सारी दुनिया ही विपदा थी,
हौसले पस्त थे,
जिंदगी एक शिकवा थी,
तब भी तो सांसों की गर्मी में बल था,
ऊषा की आशा का आँखों में संबल था,
तो क्यों आज मन मारकर यूं तो बैठा है?
क्या तू वही बच्चा है? जो आज चौबीसवीं मंज़िल पर बैठा है?-
नयनों में नमी, अधरों में अगन,
क्यों दिल में द्वंद, क्यों शिथिल चन्द्र?
क्यों कालरात्री के तीज पहर,
अपलक तकता, तू शून्य स्वयं?
क्यों भूल कलीरे कोपल के,
हर पल जपता, तू मूढ़ स्वयं?
क्यों भोर बीच, नयनों से सींच,
अश्रुपूरीत क्यों, तू तात स्वयं?
क्यों ढोल बीच, धड़कन का गीत,
रुदन मिश्रित, क्यों रात स्वयं?
क्यों प्राणवायु का वेग शिथिल,
पीड़ित है तो, कह बात स्वयं?
क्यों शीत हुआ, उद्वेग मिहिर,
प्रतिपल आवेशित, गात स्वयं?
क्यों विमुख अग्नि से सूर्य हुआ,
क्यों चंद्र-चांदनी खो बैठा?
नयनों में नमी, अधरों में अगन,
क्यों कलुषित संबल ढो बैठा?
क्यों बीच भंवर, भीषण भय है,
हर पल ढोता, क्यों भार स्वयं?
क्यों भीत किनारे गढ़ा स्वयं?
तू उतर, करेगा पार स्वयं!-
मासूम आँखें, बृहद पेट धारी,
लंबी है सूंड, जिसके कानन विस्तारी !
जगतपति, जगतपिता, जगपालनकर्ता,
सुंदर रूप, मनमोहक छटा, मेरो मन हरता !!
एक कर सोहे फरसा, दूजे में मोदक,
मंद मंद मुस्काए, आज देखो शिवसुत!
छवि लागी प्यारी, तू सबका मन हारता,
तू ही दुखहर्ता, तू ही सुखकर्ता!!-
बेतहाशा नींद की गोलियां,
डिप्रेशन के इलाज,
और
महीनो गुमसुम रहने के बाद,
उसके दोस्तो ने देखी,
पंखे पर लटकी एक लाश!
और बोले,
इंस्टाग्राम पर तो बहुत खुश दिखता था!
-
I nodded, you nodded.
Glances exchanged.
But yes,
it was't as energetic as it used to be.
Well let it be...
Because,
I am happy........
If I am happy,
Nothing else matter to me.
Yes,
I become selfish,
Credit goes to you.-
फैसला तो काफी छोटा सा था,
या शायद काफी बड़ा सा....
खैर जो भी हो,
जिंदगी निकली जा रही थी इसे लेने में,
इसी कश्मकश में रेत फ़िसली जा रही थी,
चांद जाने कितनी पूर्णमासी पार चुका था!
पर, आखिर था क्या वो बेहिसाब जरूरी फैसला?
जो रातों की नींद, दिल का चैन, आंखों की रंगत,
और धड़कन की चाल बदल चुका था!
कदमों के निशान पड़ने बंद हो चुके थे!
सांसों का बारूद सील सा गया था!
आखिर क्यों रोंगटे खुदको ही चुभने लगे थे?
क्यों धड़कन ही दिल चीरने को बेताब थी?
ऐसा क्या था उस फैसले में?
बस एक छोटा सा दरवाजा ही तो था!
असमंजस थी, तो बस ये कि खोले या नहीं!
क्यों और क्यों नहीं?
दरवाजा, हां एक दरवाजा!
पर हां, उसके दिल का नहीं!
क्योंकि वो तो दरवाजों और खिड़कियों से बहुत उपर,
पहुंच चुका था सामाजिक पराकाष्ठा तक,
पर था, एक और बहुत जरूरी दरवाजा!
हां, उसके कमरे का दरवाजा,
वही,
जो बंद रहता था हमेशा, हमेशा, हमेशा!-
मरीज़ हूं तेरे साथ का, तू कर शिफा मेरा साथ दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!
तेरे साथ थे जो दिन जिए, हर तीर तरकश में लिए!
क्षण एक क्षण यादगार था, दुनिया से थे रंजिश लिए!!
लौटा मुझे वो पल सभी, मेरी हर घड़ी का हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!
तेरा ज़िक्र मेरे सामने कर देखते चेहरा मेरा!
मेरी आंख नम हो बता रही, के ज़ख्म है गहरा मेरा!!
मेरी आंख का वो सुकून अभी है कहां तू उसका हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!
मेरी बेबसी की मिसाल दे, तू सत तिरोहित कर रहा !
मेरा सेहरा भी क्यू आज तेरी दास्तां सुन जल रहा!!
मेरी हर खुशी में क्यों तू कारण है दुखों का हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!
हर एक क़दम एक पड़ाव था, था साथ में खुशियां लिए!
वो एक ज़माना था हमारा, हर एक जमान रोशन किए!!
हूं आज भी तेरी आस में, मेरे हाथ में तेरा हाथ दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!-
यूं कुरेद कर ज़ख्म सुनो नासूर हमें क्यों देती हो?
तुमतो बनती मलहम मेरा फिर दुनिया चाहे जैसी हो!
दुनिया की सारी बंदिश तो अदनी थी तेरी सोहबत में!
तू तो जैसे शुक्र खुदा का काफ़िर जैसी तोहमत मैं!
मुझ पर काफ़िर होने के इल्ज़ाम लगाना है आसान,
तुमतो मेरा खुदा थी, हो फिर दुनिया चाहे जैसी हो!
ठेल नमक के गोदामों में ज़ख्मों का उपहास किया!
मेरी बृहद वेदना का क्यों यूं तुमने परिहास किया?
दुनियावाले मल सकते है नमक मेरे इन ज़ख्मों पर,
तुम तो बनती ढाल मेरी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!
नफ़रत के बाजारों में मेरी पाक मुहब्बत दफना दी!
हुई नीलामी कौड़ी में जो बेशकीमती सपना थी!
दुनिया ने समझा अय्यारी पाकीजा से रिश्ते को,
तुममें तो न थी अय्यारी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!
वादें, यादें, और हदें सबसे ऊपर जो रिश्ता था,
बारीकी से सिला हुआ जज्बाती एक गुजिश्ता था,
खेल समझ तुमने खेला मेरे लतीफ़ जज्बातों से,
तुम तो रहती तुम जैसी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!-