हाँ खामोश हूँ मैं अभी पर हारी नहीं ऐ जिंदगी तेरे इम्तेहानो से -
हाँ खामोश हूँ मैं अभी पर हारी नहीं ऐ जिंदगी तेरे इम्तेहानो से
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टूटती बिखरती स्वत: ही एक बार फिर बुनती हुई सी तेरी..हाँ तेरी ही उम्मीद हूँ मैं... -
टूटती बिखरती स्वत: ही एक बार फिर बुनती हुई सी तेरी..हाँ तेरी ही उम्मीद हूँ मैं...
बीती रात उस गहन अँधेरे के तले छोड़ आते हैं अपना सारा दर्द और आगाज़ करते हैं इस नई सुबह में नयी उम्मीद लेकर सूर्य की नई किरणो के साथ ... -
बीती रात उस गहन अँधेरे के तले छोड़ आते हैं अपना सारा दर्द और आगाज़ करते हैं इस नई सुबह में नयी उम्मीद लेकर सूर्य की नई किरणो के साथ ...
उन्मुक्त उड़ते परिन्दो सा पंखऔर वो खुला स्वच्छंद आसमांअदृश्य सी बेडिय़ों में जकड़े वो पाँवऔर नारी मन में विचरण करता उम्मीदों का वो कारवां -
उन्मुक्त उड़ते परिन्दो सा पंखऔर वो खुला स्वच्छंद आसमांअदृश्य सी बेडिय़ों में जकड़े वो पाँवऔर नारी मन में विचरण करता उम्मीदों का वो कारवां
मेरी पलकों को छू लेने दो चरणो को तेरेमैं नित रमी रहूं श्याम, मधुर धुन पे ही तेरे -
मेरी पलकों को छू लेने दो चरणो को तेरेमैं नित रमी रहूं श्याम, मधुर धुन पे ही तेरे
ना बीत पाया है इंतज़ार अभी भीतू दूर है बहुत बेदर्दी मुझसेपर इस दिल में है तेरे लिए प्यार अभी भीमैं बस रह गयी अब तुझमें ही कहीं गुमशुदा हो के तू कर लेना अपनी मोहब्बत का इकरार कभी भीसरिता जो बह चली है बस तकते हुए तेरी ही ओर"जाना" तुझे भी है ना अपनी वफा पे ऐतबार अभी भी -
ना बीत पाया है इंतज़ार अभी भीतू दूर है बहुत बेदर्दी मुझसेपर इस दिल में है तेरे लिए प्यार अभी भीमैं बस रह गयी अब तुझमें ही कहीं गुमशुदा हो के तू कर लेना अपनी मोहब्बत का इकरार कभी भीसरिता जो बह चली है बस तकते हुए तेरी ही ओर"जाना" तुझे भी है ना अपनी वफा पे ऐतबार अभी भी
मेरी राहत का सबब तेरी चाहत ही तो है "जाना"वर्ना तपिश इस कायनात में हर जगह मुस्तैद है.... -
मेरी राहत का सबब तेरी चाहत ही तो है "जाना"वर्ना तपिश इस कायनात में हर जगह मुस्तैद है....
कभी तरसती हुई सी , कभी बरसती हुई सी, इन आँखों ने ना जाने किस गुनाह की सजा कुबूल की -
कभी तरसती हुई सी , कभी बरसती हुई सी, इन आँखों ने ना जाने किस गुनाह की सजा कुबूल की
कतरा कतरा जिंदगी का यूं ही बीत जाए मंजूर है "जाना"कुछ पल आखिरी के ही सही, तेरी बाहों में सुकून से जी लूँ -
कतरा कतरा जिंदगी का यूं ही बीत जाए मंजूर है "जाना"कुछ पल आखिरी के ही सही, तेरी बाहों में सुकून से जी लूँ
मुझे नहीं पता, किस अलंकार से तुझे रिझा पाऊंतुम मेरे निर्मल भाव से ही, मुझे स्वीकार कर लेना -
मुझे नहीं पता, किस अलंकार से तुझे रिझा पाऊंतुम मेरे निर्मल भाव से ही, मुझे स्वीकार कर लेना