Sarita Tripathi  
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Joined 24 April 2020


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Joined 24 April 2020
5 JUL 2022 AT 22:07

हो गयी गर ग़लतियाँ
देर न करना कभी
एक गलती की सज़ा
गलती से न देना कभी
गलतियों का सुधार हो
भूल चूक माफ़ हो
सोच यही मन सदा
अपने रखना सभी
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
05-07-2022, 22:06

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15 JUN 2022 AT 17:26

मिलना उनसे मैंने चाहा मगर
मन की खिड़की बंद पड़ी थी
जितना कर सकता था किया, पर
उनकी झिड़की बुलंद खड़ी थी

चाहा जितना समेटना सबको
उतना ही सब बिखर गया
मन में हमने खोट न रक्खा, पर
पास समस्या विकट अड़ी थी
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
15-06-2022, 17:24

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10 JUN 2022 AT 9:28

था दर्द बड़ा सीने में
आँखों से बिछड़ा ख़्वाब
दिल की तन्हाई ने
था पाया हीरा नायाब
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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9 JUN 2022 AT 13:21

दूर तक चलना पड़ेगा, धूप में जलना पड़ेगा
मंज़िल की चाह में, कुछ चाह भूलना पड़ेगा

रास्ता कठिन मगर, दृढ़ इच्छाशक्ति है अगर
कंटक को एक दिन, हर हाल में झुकना पड़ेगा

पर्वतों औ खाइयों के मध्य से गुजरना अगर
आहिस्ता-आहिस्ता पग ये धरना पड़ेगा

जल्दबाजी में मिले न जीवन का सारथी
सारथी के खोज में, अर्जुन सा बनना पड़ेगा

भीड़ से लड़ना केवल बात है गुबार की
सच्चाइयों के राह पर, ख़ुद से ही लड़ना पड़ेगा
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
09-06-2015, 13:19

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8 JUN 2022 AT 13:28

हर शय बिखर तब जाता है
जब दिल से कोई जाता है
फिर सूख नयन भी जाता है
कभी भूले से याद न आता है
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
08-96-2022, 13:27

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6 JUN 2022 AT 21:03

इस गतिशील दुनिया मे
कहीं तो सुकून मिले
ये ठौर कहीं तो धरे
कहीं तो मुस्कान खिले

आपाधापी चहु ओर
मन मे उठता शोर
चलो फिर कहीं चले
कुछ सपने मन मे पले
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
06-06-2022, 21:03

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4 JUN 2022 AT 23:48

रात और ख्वाब के दरमियाँ
याद तेरी आती जाती है
ऐ सनम मेरे जा-ए-जिगर
ग़म-ए-हिज्र हमें सताती है
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
04-06-2022, 23:47

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3 JUN 2022 AT 23:39

वो साइकिल सवारी, वो यारों की यारी
ज़माना हुआ, चलते थे हम उधारी
आयेगा क्या फिर से, वो ज़माना
वो बचपन की क्यारी, वो दुनिया हमारी

गिरे कितनी बारी, वो साइकिल सवारी
दौड़े पीछे-पीछे, वो साइकिल प्यारी
वो कैंची वो डंडा, वो गद्दी ज़माना
घर की पुरानी, वो साइकिल की बारी
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
03-06-2022, 23:39

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3 JUN 2022 AT 13:39

मन मे पाने की कुछ बेकरारी रहे
खोज जारी रहे सबसे यारी रहे
टूट जाये न रिश्ते नाज़ुक डोर के
बिखर जाये न हम ज़रा सी चोट पे
दिल से दिल का मिलन रहे जिससे रहे
दिमाग से जो हो रिश्ते रहें न रहे
दूर पनघट पे अपनी निशानी रहे
राह से गुजरे राही उसे पानी मिले
मन से कोई न अब व्यापारी रहे
सबके सुख दुःख में भागीदारी रहे
नदी के राह मे कोई अड़चन न हो
दूर जंगल में अब कोई विघटन न हो
जंगली हो या शहरी घर सबके रहे
भाव हर वस्तु का मन में ज़ारी रहे
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
03-06-2022, 13:39

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1 JUN 2022 AT 19:26

गिरना है संभलना है
तुम्हारे साथ चलना है
मुसाफ़िर बनके राहों में
हमें दुनिया समझना है

नहीं कुछ दूर है अब तो
नहीं मज़बूर है अब तो
नज़र में डाल कर नज़रे
हमें बस यूँ ही हँसना है
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
01-06-2022, 19:25

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