गाँव छोड़ शहर में रहना ,इतना भीआसान नहीं है।
वृद्धों की मजबूरी का हमको कुछ भी भान नहीं है।
ना हुक्के,न ताश की महफ़िल ,कोने में आतिशदान नहीं है।
गाँव छोड़ शहर में आना ,इतना भी आसान नहीं है।
राम राम और श्याम श्याम जी,शहरों में ये आम नहीं है।
चाचा ,ताऊ ,भाइयों वाला,आदर , ओ' सम्मान नहीं है।
वृद्धों की मजबूरी का, हमको कुछ भी ध्यान नहीं है।
बचपन और जवानी वाली,प्यारी गलियों का साथ नहीं है।
आग जलाकर हाथ तापना,शहरों का रिवाज़ नहीं है।
वृद्धों की मजबूरी का,हमको कुछ भी भान नहीं है।
हलवा ,पूरी ,खीर ,चूरमा,,वाले ,यहाँ त्यौहार नहीं है।
पिज़्ज़ा बर्गर वाली पीढ़ी,गाँव -सा खान पान नहीं है।
वृद्धों की मजबूरी का,हमको कुछ भी भान नहीं है।
चादर बिछा किसी पार्क में,नभ को एकटक ताक रहे हैं।
ज़िंदा तो रह लेते हैं पर,इस जीने में जान नहीं।है।
वृद्धों की मजबूरी का,हमको कुछ भी भान नहीं है।
गाँव छोड़ शहर में रहना ,इतना भी आसान नहीं है।
सरिता शौक़ीन
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