Sarita Prasad   (सरिता)
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शिक्षिका
Joined 7 May 2022


शिक्षिका
Joined 7 May 2022
16 FEB AT 19:50

सफ़र है, सुहाना !
तुम ,बस मेरे संग रह जाना।
ख्वाबों में तुम आना,
मुझे अपना बनाना ।
एक शाम, साथ लें जाना,
दो कप चाय पिलाना।
कुछ समय साथ बिताना ,
तुम ,बस मेरे संग रह जाना।
मेरी ख़ामोशी को पढ़ जाना,
मेरा साथ निभा जाना।
राहों में छोड़ न जाना,
तुम, मेरे हो जाना।
सफ़र है ,सुहाना !

_ सरिता (कलम से)

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10 FEB AT 17:00

शाम की तन्हाई ,सुबह की सच्चाई ।
मध्याह्न का वह नूर , इसमें इश्क का क्या कुसूर ।
मध्य रात्रि की काली छाया ,
जिसमें मैं तुझे ढूंढ़ न पाया।
सूर्य की हल्की लालिमा में ,दिखती है जहाँ तुम्हारी काया ।
तुम्हारे इंतज़ार का अब,
जो है क्षण समीप आया।
कहीं खो न जाना तुम , इस संसार के मोह जाल में
यह सोच मेरा मन घबराया ।


_सरिता ( कलम से )

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30 DEC 2024 AT 23:25

अहसास

यह रिश्ता तुमसे कैसा है?
अहसास ये कैसा तुम्हीं से है?
पास होकर भी जैसे यह दूरी है।
वैसे ही जैसे समंदर को किनारों की है।

मन बैचेन है तुमसे मिलने को,
यह मजबूरी जाने कैसी है?
नींद न आँखों में मेरी है,
ये तड़प जाने कैसी है?

इंतज़ार जाने कैसा है?
वह राहें जाने किसकी हैं?
ये अहसास सिर्फ उसका है,
जिनका ऐसा रिश्ता है।

_सरिता ❤️(कलम से)


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28 DEC 2024 AT 12:48

गिलहरी

वह छोटा सा जीव,
सीधा साधा-सा सजीव ।
नैन है इसके बिल्कुल काले,
चाल है इसके मतवाले।
कुतर- कुतर को जब वह खाती ,
सबका मन मोह ले जाती ।
डाल -डाल पर, फुदक -फुदक कर ,
दिन भर अपनी फुर्ती दिखलाती।
दया, प्रेम , सहयोगी का संदेश दिलाती,
अंजाने में कई पौधे को अंकुरित कर जाती।
बसंत ऋतु की शोभा बढ़ा कर,
सभी का मन लुभा कर,
अपनापन चारों ओर फैलाकर,
अल्पायु में सब कुछ छोड़ चली जाती।

_ सरिता ❤️










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15 AUG 2024 AT 19:02

घर नहीं आ पाई वो बेटी ,
जिसे दिन- रात की फ़िक्र न थी ,
जो फर्ज़ निभाने निकली थी ।
पर क्या पता था ,
उसको आज की यह दशा होनी थी,
घर नहीं आ पाई वो बेटी ,
जो फर्ज़ निभाने निकली थी ।
हैवानियत ने जकड़ा था ।
एक काबिल, शिक्षित ,महिला शिकार बनी थी ।
पर समाज एवं सरकार ने अपनी आखें बंद कर रखी थी।
घर नहीं आ पाई वो बेटी ,
जो फर्ज़ निभाने निकली थी ।
६ दिनों से उसकी आत्मा बिन गलती की तड़प रही थी ।
पर उन शैतानों की खबर किसी को कहीं नहीं थी ।
घर नहीं आ पाई वो बेटी ,
जो फर्ज़ निभाने निकली थी ।
प्रश्न सभी स्त्रियों का था,
जो इस घटना से भयभीत थी ।
अब इंसाफ़ की बारी थी।
घर नहीं आ पाई थी वो बेटी ,
जो फर्ज़ निभाने निकली थी।

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24 SEP 2023 AT 13:53

चाहत कि चाह है, की देख लूं तुझे,
नजर से नजरिया मिला लूं तुझी से ,
की घड़ी की घड़ियां खत्म ही ना हो,
पल हर एक पल में मेरे तू शामिल हो।

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3 SEP 2023 AT 20:58

"कामयाबी दूसरों की नकल में नहीं ,
आत्मविश्वास में हैं।"



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