आज देर हो गई !
आज घर को
निकल नहीं पाई मैं
सूरज ढलने से पहले
और सूरज भी
ज़रा रुक नहीं सका मेरे लिए
रोज़ उसका प्रकाश
हिम्मत भर देता था मुझमें
रास्ता झट से कट जाता था
मां भी आह भर लेती थी
मेरे घर की देहरी भी
सुकून की सांस लेती थी
मेरे कदमों के नीचे
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I am not a writer, I just love to pen down
बारिश की बूंदे ।
बारिश ...
नाम सुनते ही
जैसे
थमी हुई या
मंद पड़ी दिल की धड़कनों को
एक रफ़्तार सी मिल जाती है
सामने अगर हो
कोई गिला कोई शिकवा
तो वो भी बारिश की
महकती बूंदों में
घुल कर शक्कर हो जाते है
बस गीत हो
बारिश हो
और हो प्रियतम
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ख़ाली हथेलियां।
वो रोज़
अपना सिर झुकाए
अपनी हथेलियों को
देखता है
देखता है
अपनी हथेलियों की
सतह को
इस पार से
उस पार दूर
उंगलियों के पोरों तक
फिर देखता है
दाएं से बाएं तक
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जी लो जिंदगी ।
जीवन की गहराई में
जितना जाओ
या झांको
कुछ हासिल नहीं होता
कितने ही शब्द
क्यों न ले आओ
और झोंक भी दो
सारे के सारे संग
तो भी तो
हर एक की कहानी का
अंत नहीं होता
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फुटबॉल से तुम ।
मुझे
जलन होती है तुमसे
कितनी आसान है
तुम्हारी जिंदगी
बिलकुल
किसी मैदान में पड़ी
फुटबॉल की तरह
कुछ भी
करना नहीं पड़ता तुमको
सब मुझे करना पड़ता है
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कल्पना ।
भरी भरी थाली
हर ओर गोल गोल किनारे तक
कैसे चमक रही है
दूर से ही
उन दो आंखों के अंदर
देख रहीं है
दूर से
मगर जी रहीं है मन तक
वो आंखें उस थाली को
क्या हुआ अगर
उसके हाथों पर भार नहीं पड़ा
चांदी की तरह चमकती
थाली का
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जब तक आती नहीं कोई ख़बर।
रेडियो पर सुना था
ऊपर कोई लड़ाई
छिड़ गई है
सभी की छुट्टियां
कुछ और दिनों के लिए
रद्द कर दी गई हैं
हो सकता है
इस बार कोई खत
भी न आए
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घड़ी की सुइयां ।
थमी हुई दीवार पर
टंगी घड़ी की सुइयां
कभी रुकती नहीं
तुम हो तो भी
नहीं रुकती
तुम नहीं हो तो भी
चलती रहती हैं
किसी के सोने पर
भी नहीं ठहरती
जागने तक चलती है
और फिर सो जाने तक
ये थकती नहीं कभी ?
सोती भी नहीं ?
दो सुइयां एक दूजे से
जब टकराती हैं
तब भी नहीं रुकती
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दिल की आंखे ।
आज दिल
सुबह से मूंह लटका कर बैठा है
किसी की नहीं सुन रहा
ना जुबां की
और न ही आंखों की
कह रहा है
के बंद होना चाहता है
अब तक धड़कना
उसको झूठा लग रहा है
आंखों तक
पहुंचा के लहू
फिर खींच ले रहा ख़ुद में
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हमेशा कुछ भी नहीं !
तुम तो
ऐसे देख रही हो
उसको जैसे
जैसे वो सदियों से
तुम्हारा ही था
आज भी वो
तुम्हारा ही है
और हमेशा ही
तुम्हारा ऐसे ही रहेगा
हमेशा ?
हमेशा के लिए
कुछ होता है क्या ?
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