Sarika Singh   (Sarika Singh ( SASSY ))
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Assistant Commissioner, GST , Govt of UP

I am not a writer, I just love to pen down
Joined 14 November 2016


Assistant Commissioner, GST , Govt of UP

I am not a writer, I just love to pen down
Joined 14 November 2016
29 AUG AT 19:12

मुझे हारना आता है ।

कांधों पर
भारी बसते में
लदी केवल किताबें ही
दिखती हैं कभी

कभी कभार
दिख जाता है
ज्योमेट्री के डब्बे का
या पेंसिल बॉक्स का
लदा भार भी

एक और भार होता है
मगर

जो दिखता नहीं
कांधों पर

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15 AUG AT 12:17

ऑफिस वाली स्त्रियों का रविवार ।

रविवार का नाम
सुनते ही
बच्चों की आंखों में
सुबह की नींद के
सपने दौड़ जाते हैं

घर के पुरुषों के
ख्यालों से जीभ तक
न जाने कैसे कैसे
स्वादिष्ट पकवानों के
स्वाद लिपट जाते हैं

कभी कोई
पिकनिक की बात करता है

तो कभी कोई
चिड़िया घर जाने की

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6 AUG AT 20:36

वो लौट कर नहीं आएगा ।

हर बार तो
मैं नहीं बुलाता था
तब भी

जाने के बाद
लौट कर आता था

मैं बंद कर के
जो चला जाता था
किवाड़ में ताला

तो भी वो देख कर
बंद किवाड़
कहीं नहीं जाता था

मुझे आज नहीं तो कल,
कल नहीं तो परसो
टहलता गली में,

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3 AUG AT 11:25

वो केवल एक ही होता है ।

झुंड होता है
तुम्हारे हर तरफ़
और लगभग
हर वक्त

सड़क पर
आते जाते

तुम्हारे ही जैसे
दिखने वालों का

या तुमसे थोड़ा अलग

मग़र होता तो है
जिसमें तुम
कहो तो
घिरे रहते हो

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17 JUL AT 23:29

वो इंतज़ार जो कभी थकता नहीं ।

सब लौट गए
शाम तक ,
तकते तकते राह
सब लौट गए

इंतज़ार किसी का
किसी के भीतर
दम तोड गया

किसी के भीतर
वो पड़े पड़े ही
मूंह मोड़ गया

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13 JUL AT 17:58

आज देर हो गई !

आज घर को
निकल नहीं पाई मैं
सूरज ढलने से पहले
और सूरज भी
ज़रा रुक नहीं सका मेरे लिए

रोज़ उसका प्रकाश
हिम्मत भर देता था मुझमें
रास्ता झट से कट जाता था
मां भी आह भर लेती थी

मेरे घर की देहरी भी
सुकून की सांस लेती थी
मेरे कदमों के नीचे

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9 JUL AT 9:47

बारिश की बूंदे ।

बारिश ...
नाम सुनते ही
जैसे

थमी हुई या
मंद पड़ी दिल की धड़कनों को
एक रफ़्तार सी मिल जाती है

सामने अगर हो
कोई गिला कोई शिकवा
तो वो भी बारिश की
महकती बूंदों में
घुल कर शक्कर हो जाते है

बस गीत हो
बारिश हो
और हो प्रियतम

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6 JUL AT 8:00

ख़ाली हथेलियां।

वो रोज़
अपना सिर झुकाए
अपनी हथेलियों को
देखता है

देखता है
अपनी हथेलियों की
सतह को

इस पार से
उस पार दूर
उंगलियों के पोरों तक

फिर देखता है
दाएं से बाएं तक

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27 JUN AT 19:48

जी लो जिंदगी ।

जीवन की गहराई में
जितना जाओ
या झांको
कुछ हासिल नहीं होता

कितने ही शब्द
क्यों न ले आओ
और झोंक भी दो
सारे के सारे संग

तो भी तो
हर एक की कहानी का
अंत नहीं होता

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20 JUN AT 19:52

फुटबॉल से तुम ।

मुझे
जलन होती है तुमसे
कितनी आसान है
तुम्हारी जिंदगी

बिलकुल
किसी मैदान में पड़ी
फुटबॉल की तरह

कुछ भी
करना नहीं पड़ता तुमको
सब मुझे करना पड़ता है

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