एक उम्र वह वक्त भी दिखाती है
जब लगता है कि इतनी दुनिया तो देख ली की ,दुनिया क्या है समझ मे आती है।
जब समझ और परिपक्वता गिर-गिरके उठने से आती है।
तब युवा विद्रोही मन करता है विद्रोह
तब लोगों का झूठ पाखंड बेवजह की बहानेबाजी और अपने नादान होने का दुःख की पराकाष्ठा ही बस होती है।
और जी चाहता है हर वक़्त विद्रोह कर दूं
झूठे को झूठा और पाखंडी को पाखंडी कह दूं
और बहाने बनाने वालों से दो टूक कह दूं,की बस अब "झूठ नही" बोलों,मैं अब इतना तो समझदार हू की सच को स्वीकार लूँगा।
केवल एक विनती है अब"छलना"नही।
हम सच स्वीकार लेंगे चाहे वह कड़वा ही क्यों न हों,लेकिन झूठ ,पाखंड से छला जाना स्वीकार नही।
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