Sarat Das   (Sarat_Das)
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Joined 23 April 2020


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Joined 23 April 2020
28 FEB 2024 AT 12:27

नज़रें फेरे यहां वहां
कुछ था जो अब नहीं है

रंगीन सा है समा
पर इक आवाज़ की कमी है

झरोखों से झांक के
शायद मनोरम दिखता है

जो जिए हैं उन्हें पता है
सच से ये कैसा रिश्ता है

यादें बसी बसी है अब भी
हम केवल कलम चलाते हैं

कुछ था जो अब नहीं है
हम फिर भी खोजे जाते हैं

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23 FEB 2024 AT 4:31

सोच है डूबी कमी में
यादें डूबी नमी में

ज़ुबां में शायद ताकत नहीं
ख्वाहिशों में शायद हिमाकत नहीं

ज़रा सा बल ले कर
किसी तरह हम बढ़ते हैं

शायद कोई अब भी हम को
दूर से देखा करते हैं

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26 JUN 2023 AT 0:13

बोझ उठाये उठाये
अब आदत सी हो गई है
अब कोई साथ आता भी है मदद को
तो खुद भी कंधा मांगता है

किस किस को रोकें
किस किसको टोकें
मुंह झुका कर कह देते हैं
"आओ, उसी रास्ते की ओर हमारा भी रास्ता है"

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23 JUN 2023 AT 18:39

खुशकिस्मत है निगाहें
के कितनों का दीदार होता है

किसी को ढका हुआ
किसी को खुला देख कर प्यार होता है

दुआ है ऊपरवाले से
के बस ऐसी नक़्क़ाशी का तराशना न रुके

आँखें सिर्फ़ खुली रह जाएं
बस कभी पलकें ना झुके

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10 MAR 2023 AT 1:21

ख़यालों में खोए
उम्मीदों को उतारा जाए
काम काज और विचारों में
समय बीत हमारा जाए

ज़िंदगी सुधारने में वक़्त है अभी
चलो रंगों से फिलहाल
कागज़ को ही संवारा जाए

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28 DEC 2022 AT 2:21

धूप में जो देखा यूं
निकले कई साए थे
सर्द मौसम में गर्मी लेने
हम भी यूं ही आए थे

आए थे इस आशा में
हमको भी मिलेगा ताप
जिस वेग से बहा रह समीर,
हम तो लगे भई थर थर कांप

ढक के चेहरा
फिर निकले हम
ठंड के मौसम में
लहू शायद गया था जम

रास न आया, गरमी ना मिली
सो यूं उत्साहित होना नहीं है ।
बस जो देखो चमकती चीज को,
तो बाबू, हर किसी में सोना नहीं है

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12 DEC 2022 AT 1:13

नज़ाकत देख के तेरी
यूं ही मन मचलता है
अदाएं देख के तेरी
फिर दिल कहां संभलता है

काश कोई करिश्मा हो
के तू बाहों में आ जाए
बस नज़रों से दूर इतराते
यूं हमको न तरसाए

हुस्न तेरा तो ऐसे
मतवाला करता है
दूर बैठा इक आशिक़
मिलन की आस रखता है

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19 OCT 2022 AT 1:26

जो खेल हम खेलें
वो बस हम में ही रहे
चाहे लाख दुनिया
मसरूफ़ियत-ए-इश्क़ के किस्से कहे

क्या होता हम तुम में है
बस हमें ही पता रहे
कहां लफ्ज़ , कहां आह
कहां पानी बहे

तस्वीरें बस वही हों
जो ज़ेहन में रहे
मशगूलियत का लुत्फ
बस दोनों के मन में रहे

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15 SEP 2022 AT 0:22

इक दौर से निकलने पे,
बस अब वो दिन याद आते हैं ।

बात - chat भले करें,
कभी मिल नहीं पाते हैं ।

वक़्त गुज़र गया
जो अब लौट के नहीं आएगा ।

शायद यूँ ही बातों - बातों में
कभी बुढ़ापा भी गुज़र जाएगा

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3 SEP 2022 AT 5:23

क्या सुनाएँ दासतां अपनी
ऐतबार क्यूं करेगा कोई
फिर यूं ही जज़्बातों में
और क्यों बहेगा कोई

हम–नाम तो मिला अभी
लगाव पर मिला नहीं
बंधा है यूं मन में जो
है प्यार तो कतई नहीं

नैनों में झांक कर के अब
है ढूंढता वही तलब
वही खुमारी खोजता
वो प्यासा यूं ही बेसबब

पर याद है उसे वही
ज़ेहन में थी बसी कहीं
है जो इस आज को घूरता
अतीत वाला इश्क़ नहीं

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