इल्म नहीं हमें सबाह या शाम की अब,
तुम्हारे ख्यालों ने हमें इनकी शबाहत में क़ैद कर रखा है ।-
जायज़ा-ए-कैफ़ियत लेने आना तुम रातों को,
दिन के उजाले में रैन के सितारे ख़ास शफ्फ़ाफ़ नहीं होते।
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वो भी एक दौर था
जब हम भी रातों से
नफ़रत किया करते थे
तन्हाई भी जब अपने
अकेलेपन को मिटाने
हमसे गुफ़्तगू किया करती थी
पर अब मरहूम हैं वो पल
क्योंकि अब तुम्हारी यादों में भी
हम खुद को महफूज़ पाया करते हैं ।-
एक अरसा हो गया है उस राह से गुज़रे,
वरना शामें तो वहीं हसीन हुआ करती थी ।
जब झरोखे से तुम्हारी झुकती नज़रें
सड़क पर मेरी उठती निगाह से मिला करती थी ।
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When all of hope has dried up,
And all of faith evaporated
Will step an unknown
With flood so huge
While the fire rages inside
The water cleanses, from out and within-
ज़र्रा-ज़र्रा यही कहे, जीवन की या सौगात
पग-पग पर मिलता ज़हर, रख ज़हरा अपने साथ ।-
"YourQuote Baba liked your quote" seemed hypothetical only until about an hour ago.-