अंजाने में भी हमसे जो गुनाह हो गया,
सदियों का गुनाहगार भी गवाह हो गया,
लोगों को जाने कितनी उसने दी है गालियां
फिर भी अपना तो कुछ भी कहना ही
अफ़वाह हो गया,
जिसने हर वक्त झूठ बोला उनका कहना ही क्या जिसने लेकिन सच्च बोला वो तबाह हो गया,
उस शख्स ने खुद ही झूठ की पहनी थी माला
लेकिन कहता है पहले मैं कुछ और था
अब जहांपनाह हो गया
...दौर-ए-जिंदगी...
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