क्यो दिनो में बांधे हम, एक दूजे के रिश्ते को
हम तो रोज मनाएंगे, दिल से दिल के बंधन को
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सपना देखा वह ,जिसे टूटना ही था
मुझे मिला वह, जिसे खोना ही था
शिकवा किस से और क्यो किया जाय
परिणाम रहा वह, जो मिलना ही था
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शिकायत नहीं करूंगा अब
सीधा आरोप लगाऊंगा
कानून की किताबें भी
यह मसला हल ना कर पाएंगी
फिर भी बिन सजा तुझे रिहा कराऊंगा-
खोटे हीरे भी अक्सर बाजार में आते हैं
नए-नए सुनार ऐसे ही अक्सर ठग जाते हैं-
लहर के साथ लाशें भी ,नदी में तैर लेती हैं,
लहर को काट जो तैरे ,जहां सम्मान देती है
बनो नायक स्वयं की जिंदगी के, साथ सब का ले कहानी आप लिख जायेगी,आशीर्वाद मां का ले-
दिन कुछ नाराज से है आजकल
हलचल मन में बड़ गई है आजकल
परिवर्तन सा एहसास है आजकल
अब सवाल बस यहीं है आजकल
कौन सा नया मोड़ है आजकल-
हारना ही परिणाम है
फिर भी लड़े जा रहे है
ये किस्सा अपवाद बन जाए
यही कहे जा रहे है-
जब सुभाष चंद्र का नारा*, गूंजा था भारत देश
तब भारत के युवा भी देने तैयार थे शीष
*तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा
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