Sanvi Singh   (Sanvi singh)
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Joined 12 March 2021


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Joined 12 March 2021
1 SEP 2021 AT 0:12

हैं मुमाकीन तो दफना दीजिये,
नहीं तो लाश छुपा लीजिये,
बच गई तो अशथियाँ, उड गई तो राख,
बचे तो बचा लीजिये, नहीं तो उड़ा दीजिये।

ढूँढ रहे हैं कहां शहर में,
हैं वो आपके ही अंदर,
मिल जाए तो ठीक नहीं तो भुला दीजिये।

रुक कर कुछ कहाँ मिलेगा,
हैं जो आपके हक का वो आकर मिलेगा,
रख सकते हैं उम्मीद तो ठीक नहीं तो मिटा दीजिये।

चुभ रहीं हैं क्या निशानी कोई,
हैं ही क्यों अब तक कहानी वही,
बेकार का हैं ये मोह हटा दीजिये और जला दीजिये,

हैं मुमाकीन तो दफना दीजिये,
नहीं तो लाश छुपा लीजिये,
बच गई तो अशथियाँ, उड गई तो राख,
बचे तो बचा लीजिये, नहीं तो उड़ा दीजिये।

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31 AUG 2021 AT 23:46

अगर हवा भि खुशबुओ के खिलाफ़ हो जायेगी,
ऐसे तो फूलों की जिंदगी खाक हो जायेगी।
दो ही पत्ते बचे हैं मौसम के,
ये भि गिर गए तो खाली साख हो जायेगी।

जिंदा है तब तक ही है कोई,
जल जायेगी तो राख हो जायेगी।
दो ही पत्ते बचे हैं मौसम के,
ये भि गिर गए तो खाली साख हो जायेगी।

धूप हैं इतरा रहा क्यो,
बादल आयेगा तो शहर में शाम हो जायेगी।
दो ही पत्ते बचे हैं मौसम के,
ये भि गिर गए तो खाली साख हो जायेगी।

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1 AUG 2021 AT 1:34

Jab aap galat kuchh kr rhe ho aur aapka koi dost aapko encourage kr rha ho na to life me us se bra dushman aapka koi nhi ho skta ...

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8 MAY 2021 AT 8:39

जिंदगी और दुश्वार नही कर सकते,
हो करीब कोई कितना, हमेशा याद नही कर सकते।

उम्मीद का दौर खत्म हुआ,
की अब और खुसियो का इंतजार नही कर सकते।

खत्म हो जाए मेरा किस्सा भले,
मगर अब और दर्द का इजहार नही कर सकते।

बहक गए थे कदम जो संभालना नामुमकिन था,
जो है सो है अब और उसे बदनाम नही कर सकते।

उठे हाथ मुझे रुलाने को वही है जो पोछता था आंशु,
तोरो कि मुझे टुकड़ा भी अब हम तुझे रोक नहीं सकते।

जिंदगी और दुश्वार नही कर सकते,
हो करीब कोई कितना, हमेशा याद नही कर सकते।

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20 MAR 2021 AT 13:09

वाबस्तगी अंधेरों से रहीं हैं जिसे उम्र भर
पहल उजालों कि वो कहां करता है

डरता रहा है अपनी परछाइयों से जो आज तक
वो मजाल किसी से उलझने कि कहां करता है

न कोई कोशिश जितने कि न भागा हार कर ही
जो खो चुका है शायद सब वो कुछ पाने की उम्मीद कहां करता है

गुज़रा है हर रास्ते से जाकर ख़िलाफ़ सबके
कांटो का सौख पाले है जो वो ज़ख्मों कि परवाह कहां करता है

अभी रस्म जिए जाने की चल रही है
खौफ मगर नहीं है मरने की उम्मीद जीने की वो कहां करता है

बंद है ख़ुद के अंदर ही वो अकेला
अपना भी नहीं है जो वो किसी अपने कि उम्मीद कहां करता है

वाबस्तगी अंधेरों से रहीं हैं जिसे उम्र भर
पहल उजालों कि वो कहां करता है




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20 MAR 2021 AT 0:18

सवेरा सा कुछ कहां है अंधेरे में अभी रहने दे,
मर ना जाए तब तलक कुछ जिंदा अभी रहने दे,
आगे कुछ नहीं है तेरा मेरा मगर ये रास्ते तक अभी रहने दे,
अब कोई नहीं दिखता है यहां अपना, मिलना-जुलना अभी रहने दे।
बहस सारी बेनतीजा है चुप चाप ही अभी रहने दे,
उस वक्त नहीं रोकूंगा अपने पास मगर अभी रहने दे,
रह लेंगे हम ख़ुश फिक्र न कर मगर अभी आंशू बहने दे,
अब कोई नहीं दिखता है यहां अपना, मिलना-जुलना अभी रहने दे।
रिहा करने के लिए तू क्यों बेचैन है मुझे अभी कैद रहने दे,
रहेगा तू मेरा होकर ये भ्रम अभी रहने दे,
जितना था वो काफ़ी ना था कुछ कमी अभी रहने दे,
अब कोई नहीं दिखता है यहां अपना, मिलना-जुलना अभी रहने दे।

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15 MAR 2021 AT 20:57

उठा हैं हंगामा जोरो का,
नाम आएगा हमारा भी बेशक,
बिछड़ने का दौड़ चल रहा है,
हाथ छूटेगा हमारा भी बेशक।
टूटा परा है सब इधर उधर,
समेटना ही क्या है अब,
उम्र भर का दर्द पला हैं,
ये दर्द ये अंधेरा आएगा हिस्से हमारे भी बेशक।
वो उधर परेशान है, ये इधर परेशान है,
ग़म ऐसे घेरा हैं ये देख कर हैरान है,
लगी है आग अगर उसके घर में,
लपट में घर आएगा हमारा भी बेशक
बिछड़ने का दौड़ चल रहा है,
हाथ छूटेगा हमारा भी बेशक।

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12 MAR 2021 AT 12:27

कितना आदि हो गया था वो सख्स तुम्हारा,
तुम्हारे बगैर जीयेगा कैसे ये सोच कर मर गया।...

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