29 NOV 2018 AT 14:41


बहर- 2122 2122 2122 212
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गांव की चौपाल से गुजरे जमाने हो गए ।
पाल बैठे हसरत शहर में ठिकाने हो गये।।
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अब नहीं आती खुशबू सौंधी हवाओं में महकती।
सांस तो घुलते हुए जहर के हवाले हो गये।।
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बात भी होती नहीं है रात को अब दर्द से ।
चमचमाती रोशनी में अज्ञ सितारे हो गये।।
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देहरी से देहरी एक दूसरे की जानते।
बोलते थे हम दिलों से वे हमारे हो गये।।
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शहर के हालात कुछ इस कदर हो गये।
झांकते कोने घरों के भी अजनबी हो गये।।

- Santoshi devi