17 DEC 2018 AT 19:21

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 22||
अर्थात : मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर नए कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही(आत्मा) पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में चला जाता है।
-श्रीमद्भागवत गीता {अध्याय 2, श्लोक 22}

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