सितम हद से ज़ियादा जब भी बढ़ते हैं ज़माने में,तभी अवतार ले कर इस धरा पर राम आते हैं।सन्तोष "सन्त" -
सितम हद से ज़ियादा जब भी बढ़ते हैं ज़माने में,तभी अवतार ले कर इस धरा पर राम आते हैं।सन्तोष "सन्त"
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लौ जलाई थी जो शहीदों ने,हमसे थामी नहीं गई अब तक।मुल्क आज़ाद हो चुका कब का,पर ग़ुलामी नहीं गई अब तक।सन्तोष पुरस्वानी "सन्त" -
लौ जलाई थी जो शहीदों ने,हमसे थामी नहीं गई अब तक।मुल्क आज़ाद हो चुका कब का,पर ग़ुलामी नहीं गई अब तक।सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"
जश्न में सब फ़त्ह के हैं चूर लेकिन, हमसे पूछो क्या हमें खोना पड़ा है।©सन्तोष "सन्त" -
जश्न में सब फ़त्ह के हैं चूर लेकिन, हमसे पूछो क्या हमें खोना पड़ा है।©सन्तोष "सन्त"
बात करनी थी........बात कर लेते,फ़ोन डायल किया तो काटा क्यों?©सन्तोष "सन्त" -
बात करनी थी........बात कर लेते,फ़ोन डायल किया तो काटा क्यों?©सन्तोष "सन्त"
(आस)न है कोई साथी,न है कोई महफ़िल,मगर गा रहा हूँ......न है कोई रस्ता,न है कोई मंज़िल,मगर जा रहा हूँ...... -
(आस)न है कोई साथी,न है कोई महफ़िल,मगर गा रहा हूँ......न है कोई रस्ता,न है कोई मंज़िल,मगर जा रहा हूँ......
"नेकियाँ करके डाल दरिया में",हम न समझे ये फ़लसफ़ा अब तक। -
"नेकियाँ करके डाल दरिया में",हम न समझे ये फ़लसफ़ा अब तक।
ख़ुद को दुहराने लगा है मेरा माज़ी,इक हबीबा फिर से याद आने लगी है।© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त" -
ख़ुद को दुहराने लगा है मेरा माज़ी,इक हबीबा फिर से याद आने लगी है।© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"
हमको सच बोलने की आदत थी,हम भी टाँगे गए सलीबों पे। -
हमको सच बोलने की आदत थी,हम भी टाँगे गए सलीबों पे।
ख़्वाब आते हैं रोज़ तड़पाने,नींद का कुछ अता पता ही नहीं। -
ख़्वाब आते हैं रोज़ तड़पाने,नींद का कुछ अता पता ही नहीं।
मश्क़ ए तज़मीनहसीन लगती है क़ुर्बत ये ठीक है लेकिन,"क़रीब आओ मगर कुछ तो फ़ासला रक्खो।"© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"बला का हुस्न लिए दिल को क्यों जलाते हो,"क़रीब आओ मगर कुछ तो फ़ासला रक्खो।"© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त" -
मश्क़ ए तज़मीनहसीन लगती है क़ुर्बत ये ठीक है लेकिन,"क़रीब आओ मगर कुछ तो फ़ासला रक्खो।"© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"बला का हुस्न लिए दिल को क्यों जलाते हो,"क़रीब आओ मगर कुछ तो फ़ासला रक्खो।"© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"