मन्ज़रनामा
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mai'n sir'f mai'n hu'n...
aur kuchch nahii'n.......
सितम हद से ज़ियादा जब भी बढ़ते हैं ज़माने में,
तभी अवतार ले कर इस धरा पर राम आते हैं।
सन्तोष "सन्त"-
लौ जलाई थी जो शहीदों ने,
हमसे थामी नहीं गई अब तक।
मुल्क आज़ाद हो चुका कब का,
पर ग़ुलामी नहीं गई अब तक।
सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"-
जश्न में सब फ़त्ह के हैं चूर लेकिन,
हमसे पूछो क्या हमें खोना पड़ा है।
©सन्तोष "सन्त"-
बात करनी थी........बात कर लेते,
फ़ोन डायल किया तो काटा क्यों?
©सन्तोष "सन्त"-
(आस)
न है कोई साथी,
न है कोई महफ़िल,
मगर गा रहा हूँ......
न है कोई रस्ता,
न है कोई मंज़िल,
मगर जा रहा हूँ......
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ख़ुद को दुहराने लगा है मेरा माज़ी,
इक हबीबा फिर से याद आने लगी है।
© सन्तोष पुरस्वानी "सन्त"-