तेरे हुश्न के चक्कर में ,
सब कुछ भूल जाता हूँ ...
जाना होता है कहीं और ,
कदम कहीं चला जाता है ...
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मुझको नहीं गुमान यूँ अपने ही अल्फाज़ पर !
नौसिखिया ही समझ स्नेहिल को आगाज़ कर !
तेरे हुश्न के चक्कर में ,
सब कुछ भूल जाता हूँ ...
जाना होता है कहीं और ,
कदम कहीं चला जाता है ...
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तेरे सिवा कोई भी मेरे दिल को खुश कर दे ,
ये हक तो मैंने किसी नजारे को भी ना दिया ...— % &-
मैं कली से फूल बन गई ...
तुझे पाकर मेरी जिन्दगी
एकदम माकूल बन गई ...
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ग़ुमसुम सा ये दिन कब ,
गुज़रा पता ही ना चला..
बस खोये थे तेरे ख्यालों में ,
कि आज फिर रात हो गई...— % &-