Santosh Kumar   (संतय्- @संतोष R kR)
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Joined 24 January 2018


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Joined 24 January 2018
16 JUN 2023 AT 12:43

भुना हो सुरुज देवा।
जब तक लावा न फुट जाइ।।

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12 JUL 2020 AT 22:49

"राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
संत्री बोला रात है,
यह सुबह-सुबह की बात है..!!

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24 FEB 2020 AT 13:53

खुले आँख से ख़्वाब जो देखे,
बंद करते ही सब टूट गए।
एक सपना को पूरा करते करते,
कई सपने अधूरे छूट गए।

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19 JUN 2021 AT 3:22

तो रात हुई।
कुछ सुक़ून के पल मिले।
गहरी अन्धेरी सौग़ात मिले।
कुछ परिंदे घर वापस आये।
बाकियों ने जान दाव लगाए।
रात अभी अभी तो गहरी हुई।

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19 JUN 2021 AT 3:05

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये

जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये

जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये

मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये.

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22 AUG 2020 AT 11:45

टहनियाँ टूट जाएगी,
तना भी उखड़ जाएगा,
पर ये जड़ अंत तक,
तुम्हारा साथ निभाएगी।
खुद डूबकर, तेरी नैया को,
मझधार के पार लगाएगी।

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2 AUG 2020 AT 11:50

दोस्त है दोस्ती निभाता है।
कभी हंसाता है, कभी रुलाता है।
बुरे वक्त में साथ रहता है।
अच्छे वक्त में खुल कर सुनाता है।
जब उनसे दूर जाओ तो,
पहले ढूंढता है, फिर लतियाता है।

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28 JUL 2020 AT 21:36

अहले इश्क़ की उसने, ऐसे दवा दिए।
मेरे इश्क़ के जुनून को, अपने इश्क़ से बुझा दिए।
हम उनकी तरफदारियाँ करते रह गए।
उसने खुद की शर्तों पर, हमको सज़ा दिए।

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20 JUL 2020 AT 23:05

चाहे उम्र कोइ भी हो,
तर्ज कोई भी हो,
मर्ज कोई भी हो।
दर्द छुपाकर अपने अंदर,
हर फर्ज निभाना पड़ता है।
हर कर्ज चुकाने पड़ता है।

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20 JUL 2020 AT 22:59

घर के दीवारों पर,
चौक चौवारों पर,
लिख दूँ तुम्हे, की
कोई तुम्हे भूल ना सके।

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