Sanskar Singh Kunwar   (Sanskar©)
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कभी दिल की आस कभी, किसी की कहानी है, ये कविता लिखने किसी न किसी की जुबानी है।।
Joined 1 April 2019


कभी दिल की आस कभी, किसी की कहानी है, ये कविता लिखने किसी न किसी की जुबानी है।।
Joined 1 April 2019
28 DEC 2024 AT 0:45

जख्मों से उभरा था मै,
मेरे बदन पे दाग थे,
मर गई थी ख्वाहिश तेरी,
उतरे चाहत के नकाब थे।
रह गया था समाए तेरी चाहत में काफिर,
कहते थे सब तेरी यादो के अंजाम थे।।

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26 DEC 2024 AT 2:55

हीर भी लिखदू रांझा भी बन जाऊ,
तेरी इबादद में मैं आकिब भी बन जाऊ,
तूने अभी इश्क़ जताया भी न है मेरे खुदा,
तेरे इकरार की सजा में मैं खुदको भी बेच दूं।।

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23 DEC 2024 AT 13:43

कोई दूर है या नूर है,
मेरी आंखों का सुरूर है,
कोई पास है ना आस है
वो अपना है और जरूर है।।

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18 NOV 2022 AT 15:41

खफा थी मोहब्बत की दुनिया,
बेरुखी कर लिया आसमानों ने भी,
जलती रही मेरे इश्क की चिता,
हंसते रही महबूब मेरी भी।।
दर्द से तड़पती ये आंखे,
आंसुओ की बढ़ो में बह गई यादें,
सितम की मोहब्बत थी जो रूह से मेरी,
बेवफाई के नगमे वो सुनने से खुदको बांधे।।
जहर सा समझ के उसकी दुख भरी कहानी,
पी गए हम भी जो सुनी उसकी ज़ुबानी,
अब्तो रहम की भी लाज नही उससे,
जिसे कहा था की है वो मेरी मेहरबानी।।
चलो अब हम भी चलेंगे उन राहों पर,
जिनपर चलने की ना कसमें ठानी थी,
जो रखते है अब मुझसे तन्हाई की कसमें,
उनकी सांसों से भी बस मेरी आह आनी थी।।

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6 MAY 2022 AT 11:17

इश्क़ था तुझसे जो मुकम्मल ना हो पाया, वरना आशिक तो आज भी हम तेरे ही है।।

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6 MAY 2022 AT 11:14

यूं पैरों पर जब तुम काला धागा बांधती हो,
अपनी खूबसूरती की सजा हमको दिलवाती हो,
बेचैन हो जाते है जो तेरी पलकों की खैरियत से,
उफ्फ तुम हम आशिको पर इतना जुर्म ढालती हो।।

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5 MAY 2022 AT 13:24

यूं बेवफाओ की तरह जो आप रुकसत करते है,
प्यार से ज्यादा आप इंतकाम करते है,
मर जायेंगे किसी दिन यूंही आपकी महफ़िल में,
फिर कहने सब मुझे आपके नाम से बदनाम करते है।।😉

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5 MAY 2022 AT 13:22

इश्क में एक दफा ठहराव ही सही,
ताउम्र नही लेकिन मोहब्बत मिले तो कही।।

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8 APR 2022 AT 0:12

बेदखल कर दिया है खुदको अब सबसे,
अपनो की दखल भी उनको अब खौफ सा लगता है।।

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8 APR 2022 AT 0:11

मैं हारा हुआ इंसान हू।।

खुदसे ही भागता हु मैं,
मैं खुदसे परेशान हुँ,
ज़िन्दगी की इस दौड़ मैं,
मैं हारा हुआ इंसान हू।।
कर्मो से चूका हु मैं,
मैं धर्मो से भी हैरान हूं,
चुभता हु खुदकी आंखों में ही,
मैं हार हुआ इंसान हुँ।।
अपनो से ही बैर हु मैं,
लगता सबको अपमान हु,
नापसंद हू अपनो को भी अब,
मैं हारा हुआ इंसान हु।।

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