Sanngya Parashar   (Writingsbysanngya)
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Joined 3 September 2020


Joined 3 September 2020
4 SEP 2022 AT 1:23

दौड़ रहे दिन रात
जीने को कुछ ख़्वाब
पीछे छूटते जा रहे
कल और आज ।


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3 SEP 2022 AT 22:03

किस्सों से भरी ,एक शाम हो जाये।
आधी खाली आधी पूरी सी
ज़िंदगी की कुछ बात हो जाये।

थामे कप हाथों मे,सोचते गुज़रते दिन की ,
एक शाम हो जाये,चलो एक चाय हो जाये।

निहारते बारिश की बूंदों को,बहती हवा को देख
चिड़िया सी चहकती ,एक शाम हो जाये
चलो एक चाय हो जाये।

टटोलते हुए जेब ,
खनखते सिक्कों की आवाज़ के बीच
मुस्कुराती बिटिया को देख, एक शाम हो जाये
चलो एक चाय हो जाये।

अदरक सी तीखी ,इलायची सी महकती
सौंधी मिट्टी की खुशबू संग,देखते मुसकुराहट तुम्हारी
एक शाम हो जाये ,चलो एक चाय हो जाये।

ढलती शाम को देखते ,भोर की उजास का सोचते
तुम संग हँसते, बाँटते सुख दुख
किस्सों वाली एक शाम हो जाये।
चलो एक चाय हो जाये।
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित

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14 AUG 2022 AT 2:02

अपने दिल की सुनो
अपने दिल की कहो
तन्हा सी भोर में
गुम न हो जाओ शोर में
अपने दिल की सुनो
अपने दिल की कहो।
अलमस्त हवाओं सा उड़ता
कल कल झरने सा बहता
ये दिल जो धड़क
रुक थोड़ा सा
क्या कहे ये दिल
अपने दिल की सुनो
अपने दिल की कहो

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14 AUG 2022 AT 1:42

शोर करती है आँखें
लगता है चुप है वो
कई दिनों से
छुपाए कई दर्द
छुपाए कई बाते।
बेपरदा करती दिल की बाते
शोर करती हैं आँखें ।

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17 JAN 2022 AT 0:25

चांद एक दोस्त की तरह नज़र आता है
कुछ मेरी सुनता है ,कुछ अपनी सुनाता है ,
रात जब भी आती है, कुछ यादें संग लाती है
चांद मेरी तन्हाई में भी मेरे एहसास पढ़ जाता है ।
मुस्कान में उसकी नज़र आए प्रियतम
छुप जाए जब बादल में, तो याद उसकी दिलाता है
चांद एक दोस्त की तरह नज़र आता है।
संग चलता मेरे ,परछाई की तरह
मेरे संग ,मेरी यादें वो भी जी जाता है
दूर कितना ही है पर बात मन की हर जानता है
चांद एक दोस्त की तरह नज़र आता है ।
अंधेरे में फैलाता उजियारा ,
चंचल चांदनी सा मन बहलाता,
हँसता हँसाता पल में ओझल हो जाता है
चांद एक दोस्त की तरह नज़र आता है।
_ स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
संज्ञा ✍️✍️

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10 JAN 2022 AT 20:18

ज़िंदगी पास ही रहती है
कल कल बहते झरने सी
खिले सुर्ख गुलाब सी
बच्चे की किलकारी में मुस्काती
ज़िंदगी पास ही रहती है।

सोये जागे ख्वाबों में
मुख्तसर सी आवाज़ो में
केन्वास पर बिखरे इंद्रधनुषी रंगों में
ज़िंदगी पास ही रहती है।

खुल जा ,घुल जा ,खिल
खिलखिला ,हर रंग में मिल
बरसते मेघा सी रिमझिम
पत्तों से छनती धूप सी

सुकून से भरी
ज़िंदगी पास ही रहती है।
-स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
-संज्ञा ✍️✍️

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29 OCT 2021 AT 23:54

हवा में अक्सर इनके पाँव रहते हैं
चेहरे पर तीखे मिज़ाज़ रहते हैं
समझतें है खुद को समझदार सबसे
गुमराह करने में ये लाजवाब रहते हैं ।
भागते दूर हर जिम्मेदारी से
काम दूसरों को थमाने के
इनके पास नुस्खे हज़ार होते हैं
दुनिया है इनकी अजब गजब
इनकी तरकीबों से वाकिफ़ हैं सब।
ऐसे कुछ लोग दफ़्तरों में
बी पी सबका बढ़ाए रखते हैं।
वक़्त के साथ पीछे छूटते
ये लोग बड़े ही ख़ास होते है।




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12 SEP 2021 AT 10:06

मुस्कुरा के मिलता हूँ
शिक़वे अब करता नहीं
ख़ैरियत से हूँ जब तक
पानीयों सा मिलता हूँ।

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8 JUL 2021 AT 1:47

जिजीविषा

खोकर अपना हमदम
खोकर हमसफ़र
आखिर वो जीना सीख ही जाती है
भुला कर वो प्यारे दिन
वो सुंदर क्षण
वो अपनों के लिए
फिर जी ही जाती है।

वो जीवन के सुंदर दिन
यादों के पन्नों में सँजो
जीवन की बगिया में
नित नए क्षण बोये जाती है
वो अपनों के लिए
फिर मुस्कान बिखेर
आखिर जी ही जाती है।

बच्चों को हँसता देख
अपना ग़म छुपाती है
समय का हाथ थामे
सुख दुख की डगर पर
बढ़ती जाती है
अपनी निर्मल मुस्कान से
हमको जीना सिखलाती है ।
आखिर वो जीना सीख ही जाती है।
-संज्ञा✍️✍️

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10 JUN 2021 AT 11:54

कहाँ रह गए तुम
मुलाकात थी कई अरसे बाद
इंतज़ार था तुम्हारा
कि मिलोगे जब तो
अनसुलझी हर वो गुत्थी
सुलझ जाएगी
जिसे सुलझाने में खुद
गुज़र गए कई साल
हल मिल जाएगा
उन पहेलियों का
जिनमें उलझ कर हो गई मै गुम
पर आज भी नहीं आये तुम
कहाँ रह गए तुम
एक और पहेली
सुलझने को है तैयार...
कहाँ रह गए तुम!
- संज्ञा✍️✍️

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