मर्दुमकी ला 'मर्दुमकी' करायला
मर्दुम- नंतर 'की' हवी
आपल्या सारख्या 'लोहा'ला गड्या
'सोनं' करायला,
परीसा सारखी 'ती' हवी!-
हरवलेल्या पावसाची हरवलेली वेळ आहे
हरवलेल्या रस्त्यांना जणू नद्यांचा मेळ आहे-
ज़माना निहारने आता होगा तुम्हें
मैं तुम्हें,तुमसे मिलवाना चाहता हूँ
तुम खुबसूरत तस्वीर हो कोई
मैं तुम्हारे सामने आईना बनना चाहता हूँ-
तीळगुळा सारखी गोड तु
तीळा सारखी तुझी खळी
सावकाश हस सखे
हि खळी घेणार कित्येक बळी-
तु अपनी चमक को क़ैद ना कर
तेरे चमक से है रोशन कई ख़्वाब
तु अपनी हसी को होठों से अलग ना कर
तेरी हसी से है गुलों में बहार
.
तु चंद किस्सों से नाराज ना हो
येह तेरी आज़माइश है
तु येह पार कर ले, तो जमाने के लिए
तेरी जिंदगी,जिंदगी जीने की नुमाईश है-
तेरे 'कल' में और तेरे 'कल' में
बस नज़रिये का फर्क है
नज़रिया बदल दो
नज़ारे खुदबखुद बदल जाएंगे-
वोह मरीज़ इस सर्द मौसम में
आग को दूर और मेहबूब को पास मांगता है
वोह मरीज़-ए-इश्क है
अपना इलाज जानता है-
जो तुम आओगी
तो कुछ चीज़ें लेतीं आना
एक बक्से में भरकर
तुम्हारा अक्स लेतीं आना-
आज कि रात सबसे लंबी रात है
इस लंबी रात में बस 'तुम्हारी' बात है
असल में अबतक ना सही
बस खयालो में 'मुलाक़ात' है-
यह कितनी सारी खिड़कियाँ, यहाँ कितनी कहानियाँ हैं
कहीं पर कितनी रौनकें, कहीं कितनी वीरानीयाँ हैं-