जैसे वे रुमाल धीरे धीरे पुराना होता है
लोग पोछे में फेक देते है..
खुद का स्वार्थ खतम होते ही...-
तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।
मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;
सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं – तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका.....-
यू राह देख देख कर
उम्र बीत रही है,तेरे बगैर ना पूछ जिंदगी कैसे बीत रही हैं जैसे एक एक दिन सावन में बारिश का सूखा पड़ा है जीवन में..-
जिंदगी में जैसे जैसे समझदारी बढ़ती जाती है
वैसे वैसे मन आत्मा को एक मौन की तरफ ले जाता
है....-
पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तौलो
ये संबंधों की तुरपाई है षड्यंत्रों से मत खोलो
मेरे लहजे की छेनी से गढ़े कुछ देवता जो कल
मेरे लफ्जे में मरते थे वो कहते है कि अब मत बोलो..-
कई सारे गुनाह सारी उम्र परदे के पीछे एक
राज की तरह रहते है,
मगर जिस दिन परदा उठ जाए और
राज खुल जाय तो आपके पैरों तले से जमीन खिसक
जाती है...-
कुछ जख्म
कुछ दर्द
कुछ यादें
कुछ बाते कुछ गम
कुछ वादे सब को भूलने में कई बार एक
अरसा निकल जाता है या तो
मर ने के बाद साथ जलती है...
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कुछ हप्तो से हमने हमारी जिंदगी का सब से कठिन समय देखा है,
लगता है हमारा भगवान भी हमसे रूठ गया है...-
ये जो तुम प्यार समझ रहे हो ना
वो और कुछ नही
एक नजर का एक रंगीन धोखा है..-