Sanjay Yadav   (Sanyogi)
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Joined 6 October 2021


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22 APR AT 22:51

तुम लौट तो आओगे
पर रह न पाओगे
बातें जो जानी है
फिर कह न पाओगे
मिट्टी जो बदल गई
कैसे फसल उगाओगे
रस्सी जो उड़द गईं
फिर कैसे बुन पाओगे
काँटे जो बोये हैं
उन्हें कैसे काट पाओगे
चेहरे की पुट्ठी को
कितना ही छुपाओगे
मन की दरार को
कैसे भर पाओगे....

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18 JAN AT 6:35

कुछ बात तो है
क्या बात है, ये बतलाना ठीक है क्या
चुप हैं तो चुप रहने दो
मुँह खुलवाना ठीक है क्या
जो राम को राम न कह पाएं
ये मार्यादा भी ठीक है क्या
जो सिया सा भाव न दे पाये
तब भी इठलाना ठीक है क्या
जो काम किसी न आ पाए
यूँही मर जाना ठीक है क्या....

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21 NOV 2023 AT 0:27

जाने कौन पनौती था
किसकी थी नज़र लगी
एक विश्वास की आग जली
एक उमीन्द की राह टली
उम्मीदें जख्म देती है
वक़्त मरहम सा लिपट जाता है...

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18 NOV 2023 AT 14:45

जो साथ होते तो अच्छा था
जो नही हो, ये भी अच्छा है...

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19 SEP 2023 AT 4:58

तुम्हारी कला भी खूब पहचानी है मियाँ ने
जो राजनीति की पेशकश दे डाली
अजी आँखों मे आँखें डाल के
झूठ बोलना कोई मज़ाक थोड़ी है...

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15 SEP 2023 AT 21:55

काश कि नियत की भी जाँच होती
तुम्हारा सैम्पल देके दिखवा लेते
अपनी भी रिपोर्ट व्हाट्सअप कर देतें
कम से कम ये मर्ज़ नासूर तो न होती...

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11 SEP 2023 AT 20:49

रुके हम भी थे
जमीं की नमी देखने को
संग बीज भी लाये थे
बंजर को हरी करने को
जिम्मे जिम्मेदारी जिसको दिए थे
रखवाली करने को
वो बीज भी बीन ले गये
घर की खलियानी भरने को...

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12 JUN 2023 AT 22:41

कब कहाँ किसको कितना मिला
सब यहाँ जिसको जितना गिला
बेहतर की उमीन्द में गुजरा कल
आज फिर रस्ते पे उजड़ा हुजरा मिला
खता तो पता नहीं मगर
सफ़र में जख्म गहरा मिला
बर्बाद बहुत हुए घड़ी को समेटने में
फिर भी वक़्त कही ठहरा मिला...

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12 JUN 2023 AT 14:55

वैसे बचा नही है कुछ खोने को
वो आखिरी बिस्सा भी गवा दिया
जाने को फ़क़त जान ही बची है
जब चाहें ले जाएँ...

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4 JUN 2023 AT 23:41

बाजार तो पहले भी देखें हैं
इस बार रंग कुछ नया है
मुखौटा ऊपर से पहने हैं
नबाब का कुछ ढँग नया है
जरूरतें जरूरी नही हैं
दिखावें का भूत चढ़ा है
ये दुकानें कोई नई नही हैं
इनपे बहुतों ने खुदको गिरवीं धरा है।

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