मैं क्या लिखूं जो सही हो
तुम तो वही हो
कलम से लिखूं या बस जुबान चला दूँ
कह दूँ कि बाकमाल हो तुम
फिर कैसे न पन्ने पलटू
कसमे वादे जो थे तुम्हारे
उनको कैसे खूँट लूँ
कैसे कहूँ कि तुम चाँद, बादल, दौलत हो मेरी
क्या अपनी आँखें फोड़ दूँ
चलो सब तुम्हारा ही मान लूँ
तो क्या अपना ईमान बेंच दूँ...-
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एक नज़र में हम आपको शायद स... read more
तेरी ज़िन्दगी जैसी भी हो
मत बताओ मुझे...
न तेरे ग़म से कोई खुशी है मुझे
न तेरी खुशी से कोई ग़म...-
दुबक कर बैठे हैं जो
कुछ धीमी बूँदो से
लुढ़क कर आते थे वो
आसमानी चमक देख कर
पहर दो पहर की बात है
अब बचपना न साथ है
बड्डप्पन की रसीद लंबी कटी है
अठन्नी अब बन्द हो चली है-
क्या बोलो इनपे
जो डर गए या दब गए
कुछ किया होगा
तभी तो उल्टे घर गए
तुम क्यों जिंदा हो
जब साँसे गिरबी रखी हैं
माथा बेसक तुम्हारा है
पर चौखट कोई फिरंगी है
ये राजनीति है
हाँ यही तो नेता नगरी है
तुमने तो आंखे खोली है
ये जनता अब भी अंधी है...-
तुम लौट तो आओगे
पर रह न पाओगे
बातें जो जानी है
फिर कह न पाओगे
मिट्टी जो बदल गई
कैसे फसल उगाओगे
रस्सी जो उड़द गईं
फिर कैसे बुन पाओगे
काँटे जो बोये हैं
उन्हें कैसे काट पाओगे
चेहरे की पुट्ठी को
कितना ही छुपाओगे
मन की दरार को
कैसे भर पाओगे....-
कुछ बात तो है
क्या बात है, ये बतलाना ठीक है क्या
चुप हैं तो चुप रहने दो
मुँह खुलवाना ठीक है क्या
जो राम को राम न कह पाएं
ये मार्यादा भी ठीक है क्या
जो सिया सा भाव न दे पाये
तब भी इठलाना ठीक है क्या
जो काम किसी न आ पाए
यूँही मर जाना ठीक है क्या....-
जाने कौन पनौती था
किसकी थी नज़र लगी
एक विश्वास की आग जली
एक उमीन्द की राह टली
उम्मीदें जख्म देती है
वक़्त मरहम सा लिपट जाता है...-