उसने कहा तुम फ़ना हुए ,सारी जहाँ की नज़रों से जैसे पत्ते टूट गए हो, हर पतझड़ में शजरों से भला कभी टूटे पत्ते, दरख्तों से जुड़ पाते हैं गले लगा झंझावातों को, उनके संग उड़ जाते हैं
हर चिलमन को बंद किया आती थी खुशबु जिधर से उनके दर की भूल गया उन ख्वाबों को जहाँ न खबर रहती थी शब् की सहर की अब दर्द हो या सुकूँ न मलाल जरा सा न उम्मीद उनसे वफा की न कहर की
मेरी गुस्ताखियों का पुलिंदा ले दर बदर भटके हर आम खास मे मुझे यूँ ही बदनाम किया जो न कर सकी आज तक गैरों से बेरुखी मेरी मेरे अपनों ने मोहब्बत मे वो काम किया झांक के न देख सके अपना गिरेबाँ तनिक अनायास मे ही बेवफा मुझे नाम दिया
आज फिर सुनी जानी पहचानी आहट आशियाने मे जुट गया फिर तकल्लुफ़ से आशियाँ सजाने मे झट पोंछ दिये लबों तक फैले बेतरतीब अश्को को गजब का लुत्फ़ आने लगा हसीन फरेब खाने में