Sanjay Tiwari   (मुसाफ़िर)
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Joined 5 May 2019


Joined 5 May 2019
22 MAR 2022 AT 22:51

बुत से सर टकराने से क्या फ़ायदा
जिस्म में जाँ हो तब तो जवाब देगा

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21 MAR 2022 AT 22:16

उसने कहा तुम फ़ना हुए ,सारी जहाँ की नज़रों से
जैसे पत्ते टूट गए हो, हर पतझड़ में शजरों से
भला कभी टूटे पत्ते, दरख्तों से जुड़ पाते हैं
गले लगा झंझावातों को, उनके संग उड़ जाते हैं


🙏

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17 MAR 2022 AT 20:06

षड्यंत्रों के दौर हैं साहब
अपने भी उसमे शामिल हैं
रिन्दों को भला मैं दोष क्यूँ दूँ
जब अपने कातिल साहिल हैं

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16 MAR 2022 AT 22:50

हर चिलमन को बंद किया
आती थी खुशबु जिधर से उनके दर की
भूल गया उन ख्वाबों को
जहाँ न खबर रहती थी शब् की सहर की
अब दर्द हो या सुकूँ न मलाल जरा सा
न उम्मीद उनसे वफा की न कहर की

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26 JAN 2022 AT 22:09

चालबाजियां, फितूर सिखा दिया ज़माने ने हमको
वरना शरीफ लोगों की फेहरिस्त मे अपना भी नाम शामिल था

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5 OCT 2021 AT 22:01

उम्मीद, ख़्वाब, असबाब सब छूट गए
हम तो पत्ते थे सूखे, जो टहनियों से टूट गए
उनका क्या भरोसा, जो थे बेमौसम बारिश की तरह
रुख हवा का तेज देखा, और रूठ गए

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29 SEP 2021 AT 20:56

खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
फ़िराक गोरखपुरी

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21 SEP 2021 AT 23:40

मेरी गुस्ताखियों का पुलिंदा ले दर बदर भटके
हर आम खास मे मुझे यूँ ही बदनाम किया
जो न कर सकी आज तक गैरों से बेरुखी मेरी
मेरे अपनों ने मोहब्बत मे वो काम किया
झांक के न देख सके अपना गिरेबाँ तनिक
अनायास मे ही बेवफा मुझे नाम दिया

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21 SEP 2021 AT 17:06

चलता हूँ ये मेरे दोस्त
जिंदगी मे कहीं किसी मोड़, फिर मिलेंगे
याद रखना जरा सी नसीहत मेरी
गर बागबां न सुकूँ से ,तो गुल कहाँ खिलेंगे

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18 SEP 2021 AT 10:28

आज फिर सुनी जानी पहचानी आहट आशियाने मे
जुट गया फिर तकल्लुफ़ से आशियाँ सजाने मे
झट पोंछ दिये लबों तक फैले बेतरतीब अश्को को
गजब का लुत्फ़ आने लगा हसीन फरेब खाने में

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