sanjay kuril   (संजय कुरील.)
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Joined 5 July 2017


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24 JUL 2021 AT 2:49

बड़े बड़े सपने पूरे करने के लिए जो आप छोटे छोटे काम को अनदेखा कर देते हो ना उसी में बड़े सपने पूरे करने की चाभी छुपी होती है

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12 MAY 2021 AT 16:42

अब होती पुरानी
मेरी किताब के
कुछ किरदार के पन्ने
फट गए और
कुछ को हमने
बहुत संभाल कर रखा है........

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18 MAR 2021 AT 17:49

सिक्को की तरह हर बात के दो पहलू होते है
जब हम रास्ते चल रहे होते है तो गलती हमेसा कार चलाने वाले कि लगती है।
और जब हम कार चला रहे होते है तो रास्ते मे चलने वाले कि गलती नजर आती है।
स्तिथि के अनुसार नजरिया बदल जाता है।
ऐसे ही परिवार में एक ही व्यक्ति के कई किरदार और जिम्मेदारी होती है जो केवल नजरिये का अंतर है।
और आपके सोच के ऊपर निर्भर है।

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4 MAR 2021 AT 0:34

स्त्री के सन्मान और अधिकार के लिए पुरुष ने ही आगे आकर पुरुष से युद्ध किया है.....इतिहास साक्षी है
किन्तु पुरुष के अधिकार के लिए कभी स्त्री ने स्त्री से युद्ध नही किया?
वक़्त आ गया है सभी स्त्री भी पुरुषआयोग की मांग करे
पुरुषो को भी अधिकार मिले
आज के युग मे पुरुष पीड़ित भी है...


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26 FEB 2021 AT 3:06

चलते चलते रुक गए
की आज क्या भूल गए
की आया याद
की वक़्त देना था परिवार को
वही भूल गए....

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25 OCT 2020 AT 6:42

मेरा और आईने का हमेशा ना बना।
की कभी चेहरे के पीछे का हाल नही दिखता।।
वही दिखता रहा जो मैंने तुझे दिखाता रहा।।
बड़ा ईमानदार होने का बहाना जमाने से सीखा है तूने।।

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25 OCT 2020 AT 6:17

तेरे करीब होने की खुशबू वह सूखे फूल मेरे किताबो के याद दिला देते है कि वक़्त अब भी वही है।
की चल पड़े ज़िन्दगी उसी पल से जब बिछड़े थे हम कभी।।

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25 OCT 2020 AT 6:05

तनखा जब कमीज में थी तो सुकून था।
अब तकिये में है सुकून नही है।।
की इजहार करते करते।
इजहार की वजह भूल गया।
सुकून मांगते मांगते सुकून कहा खो गया।
पंछियो की घर का एक एक तिनका
उन सपनों का।
जमी पर बिछा कर वो सो गया।।
मुझे उम्र भर लगता रहा
आसमान में उड़ने से सुकून मिलता है
मैं इसी भरम में रह गया।।

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14 SEP 2020 AT 17:51


।।दोहा।।
मातृ प्रेम सब जपीहे।
पितृ प्रेम न सुने ना कोई।।

पुत्र बिछड़े प्राण छोड़ी।
दशरत को ना पूजत कोही।।

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14 SEP 2020 AT 17:45

मातृ प्रेम सब जपीहे।
पितृ प्रेम न सुने ना कोई।।

पुत्र बिछड़े प्राण छोड़ी।
दशरत को ना पूजत कोही।।

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