जब समाज के तानों और अपनी नाकामियों से ऊब गया एक लड़का जा पहुंचा प्रेमिका के कंधे पर शायद यही एक जगह थी जहां तुम्हारी नाकामयाबियो को कोसा नहीं गया बेरोजगारों को पत्नियां नहीं मिलती लेकिन प्रेमिकाएं मिल जाती है क्योंकि एक वो ही गैर होती है जो परिवार की तरह प्रार्थना करना जानती है। शादी के बाद पहली रसोई करने वाली पत्नी हलवा बनाती होगी लेकिन तुम्हारी एग्जाम के दिनों में अपना टिफिन खिलाने वाली लड़की को ही तुम्हारी सरकारी नौकरियां खा जाती है।जिसने तुम्हें मायूसी में संभाला, तुम्हारी अवहेलना, तुम्हरा गुस्सा, तुम्हारी नाकामियों तक को संभालने वाली को तुम मजबूरी के नाम पर संभाल नहीं पाए, छोड़ दिया समाज क्या कहेगा कह कर जो तुम्हारे संघर्ष का साथी रही समाज से ठीक पहले ऐसी प्रेमिकाओं को तुम कभी वक्त नहीं दे पाए पहले वक्त परीक्षाएं ले गई बाद में पत्नियां प्रेमिकाओं के हिस्से केवल झूठी प्रतीक्षा अगले जन्म में तुम्हारी पत्नी बनने, तुम्हरा पेपर कैस गया ?–यह केवल प्रेमिकाओं ने पूछा!शादियां होती है घर ,परिवार ,पैसा नौकरी चेहरा देखकर! पत्नियों को पता है रोज शाम को घर ही लोटोगे तभी तुम्हारी पत्नियों ने तुम्हरा वक्त नहीं साड़िया मांगी तुम्हारे संघर्ष की साथी रही प्रेमिकाओं ने तुम्हारी कामयाबी के सपने देखें और उसे पूरा करने के लिए साथ खड़ी रही उसी ने उस सिंदूर की कीमत भी अदा की जो उसके हिस्से कभी आया नही
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😊एक आजाद परिंदा ✒
सुना जाता है कि पहले ज़माने में नौजवान , मुल्क जीतने,लंबी और कठिन यात्राएं करने,खानदान का नाम ऊँचा करने के ख्वाब देखा करते थे । अब वे केवल नौकरी का ख्वाब देखते हैं । नौकरी ही हमारे युग का सबसे बड़ा एडवेंचर है ! आज के फाहियान और इब्नबतूता, वास्कोडिगामा और स्काट, नौकरी की खोज में लगे रहते हैं । आज के ईसा, मोहम्मद और राम की पहली मंजिल नौकरी है ।
नौकरी !तीन अक्षर और दो मात्राओं का यह शब्द आज के ख्वाबो की कसौटी है । जो इस कसौटी पर खरा उतरे वही खरा है...
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आज 12 कक्षा का रिजल्ट आ चुका है, और कुछ दिनों में 10 कक्षा का रिजल्ट भी आ जाएगा 95% अंक प्राप्त करने वाले बच्चों के अभिभावक बड़े गर्व से उनका नाम और फोटो डालेंगे - भला अपनी संतान की उल्लेखनीय सफलता पर किस माता-पिता को गर्व नहीं होगा? उनकी छाती चौड़ी नहीं होगी? ऐसे सभी बच्चों और उनके माता-पिता और को बहुत-बहुत बधाई। लेकिन उनका क्या जिन बच्चों ने 62% अंक प्राप्त किए है उनके अभिभावक के पास कुछ गर्व करने के लिए नहीं है क्या? ऐसे छात्र और छात्राएं जो परीक्षा में अंक नहीं ला सके अपने माता पिता की आशाओं पर खरा नहीं उतर सके वे निश्चित ही निराश और हताश होंगे हो सकता है उन्हें तरह-तरह के तानों का भी सामना करना पड़े यह पोस्ट ऐसे ही छात्र-छात्राओं और अभिभावकों के लिए है।
( Read in caption)-
एक आजाद परिंदा
राहगीर सा अनजान जगहों पर अब,
भटकता सा ही रहता हूं। अपने शहर
में होता तो घर लौट जाता।
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एक आजाद परिंदा
हसीन बर्फिली वादियां पुकारती रहीं मुझे,
मैं रेगिस्तान में जीवन तलाशता रहा।-
एक आजाद परिंदा
उसकी मीठी-मीठी सी यादों की बौछार और मुझे मधुमेह का रोग
रहने दो डाक्टर साहब हमसे और परहेज ना होगा।-
कोई तालुक्ख तो नहीं रहा तुमसे। मगर जब भी आईने से रूबरू होता हूं, ऐसा लगता है शीशे से छनकर आवज आ रही हो। आवाज जो मखमली तो है मगर मांझे सी धारदार भी है। वही आवाज मेरे कानों में गूंजती है, और ह्रदय को चीरती रहती हैं।
"कोई इतना भी बदल जाता है क्या?"
और में हैरान हूं ये सोचकर कि ये तुम हो या आईना है?-
एक आज़ाद परिंदा
अंतर सिद्धांत का ही होता है
लोगो ने किताबे बेहतर इंसान होने के लिए पढ़ी
और हमने नोकरी के लिए।
हमारी आत्मा नौकरी के खूंटे से बंधी हुई
लिपी की नांद में चारा खा रही हैं।-