Sanjay Kumawat  
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जो आज पराजित है वही कल का नायक है।
😊एक आजाद परिंदा ✒
Joined 18 November 2018


जो आज पराजित है वही कल का नायक है।
😊एक आजाद परिंदा ✒
Joined 18 November 2018
16 APR 2022 AT 6:39

सुना जाता है कि पहले ज़माने में नौजवान , मुल्क जीतने,लंबी और कठिन यात्राएं करने,खानदान का नाम ऊँचा करने के ख्वाब देखा करते थे । अब वे केवल नौकरी का ख्वाब देखते हैं । नौकरी ही हमारे युग का सबसे बड़ा एडवेंचर है ! आज के फाहियान और इब्नबतूता, वास्कोडिगामा और स्काट, नौकरी की खोज में लगे रहते हैं । आज के ईसा, मोहम्मद और राम की पहली मंजिल नौकरी है ।
नौकरी !तीन अक्षर और दो मात्राओं का यह शब्द आज के ख्वाबो की कसौटी है । जो इस कसौटी पर खरा उतरे वही खरा है...

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8 OCT 2021 AT 9:38

कोई तालुक्ख तो नहीं रहा तुमसे। मगर जब भी आईने से रूबरू होता हूं, ऐसा लगता है शीशे से छनकर आवज आ रही हो। आवाज जो मखमली तो है मगर मांझे सी धारदार भी है। वही आवाज मेरे कानों में गूंजती है, और ह्रदय को चीरती रहती हैं।
"कोई इतना भी बदल जाता है क्या?"

और में हैरान हूं ये सोचकर कि ये तुम हो या आईना है?

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15 SEP 2021 AT 12:48

जो मंजिलों को नहीं जाते हैं।

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11 SEP 2021 AT 10:51

एक आज़ाद परिंदा

अंतर सिद्धांत का ही होता है
लोगो ने किताबे बेहतर इंसान होने के लिए पढ़ी
और हमने नोकरी के लिए।
हमारी आत्मा नौकरी के खूंटे से बंधी हुई
लिपी की नांद में चारा खा रही हैं।

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10 JUL 2021 AT 13:43

एक आजाद परिंदा

शुरू होता है इन ही ऊंचाइयों से भय,
और इस भय को भेदने की इच्छा
भी शुरू होती है यहीं से

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25 JUN 2021 AT 14:53

24 वर्ष बीत गए एक गहरा अंधेरा, व भयभीत करने वाला सत्य मानो अवसाद सा पिछले कुछ वर्षों में एक सपने की भांति बीत गया। कोई असली सत्य पाना अभी शेष है, शायद वह एक संयमित सात्विक जीवन से उपलब्ध हो सकेगा जिसकी झलक मात्र मेरे विचारों में आकर गायब सी हो जाती है अनंत अंधेरी खोह में,
मैं बीच-बीच में अपनी ही मनो स्थिति में खो जाता हूं। कोनसी मेरी वास्तविक स्थिति है वह जो सपने सा बीत गया है या प्रखर रोशनी के वे क्षण जो सपने सा दिखता रहता है?
जीने का अंतिम क्षण वास्तविकता में जीने का होगा या, सपनों में लौटने का ?

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10 JUN 2021 AT 21:01

एक आज़ाद परिंदा

यह दुनिया विश्वास पर टिकी है। समय सभी संभव संभावनाओं से तुम्हें रूबरू करवाता है। संसाधन तुम्हें सीमाओं के परे ले जाते हैं। मैं सोचता हूं, कि यह सारी दुनिया काल्पनिक हैं। और तुम्हें भी ज्ञात होगा की कल्पनाओं की कोई सीमा नहीं है। वे ठीक तुम्हें उतना ही आगे ले जाती है, जितना तुम जाना चाहते हो
तो मेरी समझ में यह आया कि मैं कोई काल्पनिक पुतला नहीं, मैं यहां किसी विश्वास पर ही टिका हूं, और इसका मतलब यह हुआ कि तुम भी यहां पर मेरे सामने किसी विश्वास से ही टिके हो.......

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19 MAY 2021 AT 13:18

एक आज़ाद परिंदा

कोई देखे तो तेरी आंखों को भी देखे,
कितने सपनो ने इनमे खुदकुशी की हैं।

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12 MAR 2021 AT 18:27

अंधेरे शक्तिशाली है बहुत,
आवृत कर लेते हैं सृष्टि, चलो माना,
पर इतने भी नहीं कि
रोक ले रास्ता सूरज का....

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12 MAR 2021 AT 18:19

एक आजाद परिंदा

कुछ किस्से, कुछ लम्हें
कुछ पल, कुछ बाते
कुछ आदतें, कुछ दर्द
कुछ असफलताएं, कुछ सपने
और एक आशावादी मन को
जोड़कर हूं मैं।

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